30 जनवरी 2018

शब्द आले, शब्द गेले

शब्द आले, शब्द गेले, शब्द बोलत राहिले 
शब्द पडले, शब्द उठले, शब्द डोलत राहिले 

शब्द मिटले, शब्द फुलले, शब्द बहरत राहिले 
शब्द झडले, शब्द रुजले, शब्द उमलत राहिले 

शब्द सुकले, शब्द भिजले, शब्द बरसत राहिले 
शब्द स्वप्नांच्या सरींचे वार झेलत राहिले 

शब्द खचले, शब्द विरले 
शब्द लढले, शब्द हरले 
शब्द बुडले, शब्द तरले, शब्द उसळत राहिले 
वेदनांची रत्नमाला शब्द माळत राहिले 

शब्द झुरले, शब्द रुसले 
शब्द रडले, शब्द हसले 
शब्द भुलले, शब्द फसले, शब्द भाळत राहिले 
शब्द दगडी देवतांवर व्यर्थ उधळत राहिले 

शब्द थकले, शब्द विटले 
शब्द सजले, शब्द नटले 
कालगंगेतून अविरत शब्द वाहत राहिले 
मार्ग सारे खुंटले, पण शब्द चालत राहिले 

- अनामिक 
(१२-३०/०१/२०१८) 

25 जनवरी 2018

काँच की दीवार

ये काँच की दीवार है मेरे-तुम्हारे दर्मियाँ 
यूँ तो लगे नाजुक, मगर फौलाद से कुछ कम नही 
इस को गिराने का खुदा की जादू में भी दम नही 

इस छोर का, उस पार का सब कुछ दिखाई दे, मगर.. 
हैं बंदिशें दोनो तरफ आवाज के हर रूप पर 
बातें, पुकारें, शोर, सुर, सिसकी, हसी, सरगम नही 

इक दौर था, जब दो पलों की गुफ्तगू ही थी खुशी 
अब तो महीनों की घनी खामोशी का भी गम नही 

अब सच कहू, तो काँच की दीवार ही ये है सही 
बंद खिडकियाँ खुलने की अब उम्मीद कम से कम नही 
शायद पुकारोगे कभी, गलती से ही.. ये भ्रम नही 
हाँ, वक्त से बढिया किसी भी जख्म पर मरहम नही 

- अनामिक 
(२३-२५/०१/२०१८)