22 दिसंबर 2017

तोहफा

सोच रहा हूँ, क्या दू तुमको ? तोहफा क्या लाजवाब दू ? 
झिलमिल झुमकें, छनछन पायल, या नाजुक सा गुलाब दू ? 

देने को तो खरीदकर दू मैं तो पूरी दुकान भी 
तोहफें रखने कम पड जाए तुमको अपना मकान भी 

शायर हूँ पर.. सोचता हूँ, लब्जों में रंगी स्याही दू 
तुम पर लिखी तमाम नज्मों से बढकर तोहफा क्या ही दू ? 

स्वीकार करो या ठुकराओ.. तुम करना जो भी लगे सही 
ये गीत मगर गूँजेंगे ही.. ये रसीद के मोहताज नही 

- अनामिक 
(२३/१२/२०१६ - २२/१२/२०१७)

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