07 दिसंबर 2017

नजरें

अल्हड नजरें, चंचल नजरें.. जजबातों से बोझल नजरें 
चुपके से दीदार पिया का करने हर पल बेकल नजरें 

इन नजरों से मिल जाने बेचैन भटकने वाली नजरें 
भटक-भटक इन नजरों के ही पास अटकने वाली नजरें 

टकराए जब, शरमाकर खुद को ही झुकाने वाली नजरें 
नर्म अधखुली पलखों से फिर धीमे मुस्काने वाली नजरें 

जान-बूझकर टकराकर भी, सोच-समझकर भिडकर भी 
गलती से ही टकराने का आभास जताने वाली नजरें 
लाख छुपाकर भी सब कुछ ही साफ बताने वाली नजरें 

इन नैनों के रस्ते दिल के पार उतरने वाली नजरें 
कटार जैसी धार से अपनी घायल करने वाली नजरें 

कभी रूठकर, कभी सताने खामखा मुडने वाली नजरें 
ज्यादा दूरी सही न जाकर फिर से जुडने वाली नजरें 

दो नैनों से सौ तरहा के रूप दिखानेवाली नजरें 
लब्जों बिन मीठी बोली से प्रीत सिखाने वाली नजरें 

- अनामिक 
(२५/११/२०१७ - ०७/१२/२०१७)

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