पर जो हुआ, वैसा ही करने का इरादा था नही
कुछ वक्त की बदमाशियाँ, कुछ चाल थी हालात की
कुछ खेल था संजोग का, कुछ थी खता जजबात की
मैं बस समय की उस नदी में नाव सा बहता गया
बहाव के सब पत्थरों के घाव फिर सहता गया
ना जख्म का गम, बस खुदा से है गिला इस बात का
अपनी सफाई का मुझे मौका न इक भी दे सका
पर आज भी वो हादसा खुद की नजर में माफ है
दिल साफ था उस रोज भी, और आज भी दिल साफ है
- अनामिक
(१३,२०/१२/२०१७)
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