30 नवंबर 2017

सौदा

क्यों बिन फायदे का रिश्ता जोडे ?
चल इक सौदा करते हैं 
जो पास खजाना है दोनों के, 
आधा-आधा करते हैं 

                              तू धूप सुनहरी ले आना 
                              मैं बरसातें ले आऊंगा 
                              कुछ नजरानों के बदले में 
                              कुछ सौगातें ले आऊंगा 

मैं तेरी पतझड ले लूंगा 
तू मेरी बहारें रख लेना 
मैं तेरे अंधेरें पी लूंगा 
तू मेरे सितारें रख लेना 

                              हर दर्द उठा लूंगा तेरा 
                              मेरी मुस्कानें रख लेना 
                              गा लूंगा तेरी चुप्पी भी 
                              तू मेरे तरानें रख लेना 

मैं तेरी आँधियाँ झेलूंगा 
तू मेरी हवाएँ रख लेना 
मैं तेरी बलाएँ ले लूंगा 
तू मेरी दुआएँ रख लेना 

                              तनहाई अपनी दे देना 
                              पर मेरी सोहबत रख लेना 
                              नफरत भी देना, फिकर नही 
                              पर मेरी मोहब्बत रख लेना 

तू जो बोले दिल, दे देना 
तू जो बोले दिल, रख लेना 
मंजूर मुझे है सौदा, बस.. 
दिल के बदले दिल रख लेना 

- अनामिक 
(२५-३०/११/२०१७) 

29 नवंबर 2017

कुछ करतब हो तो बतलाओ

ये बात समझ के बाहर है 
क्या हुनर भला शानदार है ? 
खासियत कौनसी है तुम में ? 
जो गुरूर सर पर सवार है 

मैं जी भरकर तारीफ करू 
मैं सर-आँखों पर भी रख लू 
कुछ कला, कसब तो दिखलाओ 
कुछ करतब हो तो बतलाओ 

तुम हुस्नपरी हो, तो मानू 
तुम जादूगरी हो, तो मानू 
इक साधारण सी सूरत लेकर 
चार किलो श्रुंगार चढाकर 
दो कौडी की घमंड का 
कुछ मतलब हो तो बतलाओ 

इन्सान अगर हो, इन्सानों की 
तरह जमीं पर चला करो 
हर वक्त गगन में रहने वाले, 
तुम रब हो तो बतलाओ 

जो मान उचित है, बेशक दू 
पर काबिलियत के नुसार ही 
बस लडकी हो तो भाव चाहिए 
ये दलील मंजूर नही 

मैं दोस्त बनूंगा खुद होकर 
गप्पें कर लूंगा जी भरकर 
जब बेवजूद ये अकड, हेकडी 
गायब हो तो बतलाओ 

कुछ करतब हो तो बतलाओ 

- अनामिक 
(२८,२९/११/२०१७)

23 नवंबर 2017

चुन लिया, बस चुन लिया

यूँ तो न रेशम और मखमल की कमी बाजार में
इक ख्वाब धागों से रुई के बुन लिया, बस बुन लिया 

यूँ तो न अंबर में पडा है चाँद-तारों का अकाल 
पर इक दफा, ग्रह ही सही, जो चुन लिया, बस चुन लिया 

वैसे न मानी बात औरों की, न खुद की भी कभी 
इक बार पर जो हुक्म दिल का सुन लिया, बस सुन लिया 

हर गैर से रिश्ता बनाने की मेरी फितरत नही 
इक बार अपनों में किसी को गिन लिया, बस गिन लिया 

- अनामिक 
(०६/०६/२०१७, २३/११/२०१७) 

07 नवंबर 2017

रूबरू

हैं वक्त की बदमाशियाँ,
फिर लौट आयी वो घडी
जिस मोड से मैं थी मुडी,
उस मोड पे फिर हूँ खडी
रंगीन ख्वाबों के सफर में अतीत फिर है रूबरू
इक हादसे में खो दिया, वो मीत फिर है रूबरू          ॥ मुखडा ॥ 

बीते समय की पटरियों पे ट्रेन यादों की चले
दो बोगियाँ होकर जुदा भी ना मिली थी मंजिलें
कितनी भी खोलू खिडकियाँ,
गुजरा नजारा ना दिखे
जो रह गया पीछे कही
स्टेशन दुबारा ना दिखे
खिलकर लबों पे चुप हुआ, वो गीत फिर है रूबरू
इक हादसे में खो दिया, वो मीत फिर है रूबरू          ॥ अंतरा-१ ॥ 

वो गैर संग खुशहाल है, ये बात अब क्यों खल रही ?
खुद ही बुझाई थी कभी, वो आग फिर क्यों जल रही ?
कुछ गलतियाँ, नादानियाँ,
कुछ जिद-घमंड, शिकवें-गिलें
जड से जला देती अगर
होते न पैदा फासलें
वो हार मेरी, गैर की बन जीत फिर है रूबरू 
इक हादसे में खो दिया, वो मीत फिर है रूबरू          ॥ अंतरा-२ ॥ 

- अनामिक
(०१-०७/११/२०१७)