23 जुलाई 2017

आर या पार

बहोत हो चुकी लुक्का-छुप्पी, कुछ तो तय इस बार करो 
करना है तो प्यार करो.. वरना सीधा वार करो 

मन के फिजूल खेल न खेलो, नये पैंतरे तो सोचो 
घिसीपिटी सब तरकीबों से दिल का फिर न शिकार करो 

टुकडे टुकडे हो जाए दिल, ऐसा तेज प्रहार करो 
मिर्च रगड दो सब जख्मों पर, दर्दों से बेजार करो 

या फिर छू लो होले से दिल, नर्म हाथ से दस्तक दो 
प्रीत की रिमझिम बारिश से दिल की जमीन गुलजार करो 

चूहे-बिल्ली वाले खेल में मुझे न अब दिलचस्पी है 
मान से दिल में पनाह दू, पर शान से चौखट पार करो 

प्यार करो या वार करो.. पर जो है, आर या पार करो 

- अनामिक 
(१०-२३/०७/२०१७) 

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