28 अप्रैल 2017

पुष्कळ झाली फुले अबोली

पुष्कळ झाली फुले अबोली, गुलाबास चल देऊ संधी
संवादाचा फोडू पाझर, अन् मौनावर घालू बंदी        ॥ धृ ॥ 

नको नदी, अन् नकोच सागर.. स्वस्थ बसू इथल्या बाकावर 
झटकुन टाकू रुसवा-फुगवा, राग साचलेला नाकावर 
पुसून टाकू गतकाळाच्या समज-गैरसमजांच्या नोंदी ॥ १ ॥ 

गरम चहाने सुरू करूया थंडावलेल्या अपुल्या गप्पा 
घोटागणिक चहाच्या उघडू अलगद बंद मनाचा कप्पा 
इवलासा संवाद आजचा नव्या उद्याची ठरेल नांदी   ॥ २ ॥ 

गंधासोबत ऊब चहाची हळू भिनू दे मनी खोलवर 
विसरुन जाऊ कटुत्व सारे, जशी विरघळे चहात साखर 
तुझ्या गोड स्मितहास्याने वाटेल चहाही जणु बासुंदी ॥ ३ ॥ 

- अनामिक 
(२५-२८/०४/२०१७) 

20 अप्रैल 2017

डगर

सांझ शीतल, छाँव की चुनरी लपेटे है डगर 
चल पडे हैं बेसबब हम दो, जहाँ से बेखबर 

बुलंद पेडों का सजा है शामियाना स्वागत करने 
डालियों की खिडकियों से छू रही हैं नर्म किरनें 

रासतेभर सुर्ख पत्तों का बिछा कालीन है 
सावली परछाइयाँ भी दिख रही रंगीन हैं 

तितलियों के भेस में कुछ ख्वाब नाजुक उड रहे हैं 
सुर मधुर चंचल पवन की बांसुरी से छिड रहे हैं 

हाथ थामा है तुम्हारा, यूँ लगे रेशम छुआ है 
तेज पहिया वक्त का तुम संग लगे मद्धम हुआ है 

खत्म भी हो, या न हो अब ये डगर, ना है फिकर 
यूँ ही रहो तुम हमकदम, चलते रहेंगे उम्रभर 

- अनामिक 
(१०/०१/२०१७ - २०/०४/२०१७) 

13 अप्रैल 2017

मोल

हर शहर की ही तरह इस शहर से भी खामखा
एक तोहफा ले लिया है फिर तुम्हारे नाम का

ये जानकर भी की तुम्हे इसकी कदर तो है नही
पर क्या करू ? आदत कहो, खुद की तसल्ली ही सही

संदूक में ही बंद रखू, तुम तक न पहुँचाऊ अभी
घर-वापसी की तो न नौबत आएगी उसपर कभी

छोड भी दो मेरे, तोहफे के मगर जजबात हैं
उनका समझना मोल ना बस की तुम्हारे बात है

- अनामिक
(११-१३/०४/२०१७)

03 अप्रैल 2017

बस एक कदम

जल कितना भी हो अंबर में, बिन बादल कैसे बारिश हो ?
मैं लाख जतन भी कर लू, पर.. तुमसे भी तो कुछ कोशिश हो 

तुम एक कदम बस चल आओ, मैं तै सैंकडों मकाम करू 
तुम एक घडी दो फुरसत की, दिन-रैन तुम्हारे नाम करू 

तुम एक संदेसा भेजो बस, मैं बाढ चिठ्ठियों की लाऊ 
तुम एक पुकार लगाओ बस, मैं पार जलजलें कर आऊ 

तुम एक लब्ज ही कह दो बस, मैं नज्मों की बरसात करू 
तुम एक दफा बस मुस्काओ, मैं खुद होकर शुरुआत करू 

पर कम से कम वो एक कदम अब तुम्हे ही उठाना होगा 
मैं खोलूंगा दर झटके में, पर तुम्हे खटखटाना होगा 

मैं मीलों चल आया हूँ अब तक, थमना अभी जरूरी है 
पग में जमीर की बेडी है, जिसकी न मुझे मंजूरी है 

- अनामिक 
(२८/०३/२०१७ - ०३/०४/२०१७)