कभी ये गली, कभी वो डगर
रुकने का ना नाम ले रहा
शुरू हुआ इक बार जो सफर ॥ धृ ॥
कभी पर्बतों की ऊँचाई
कभी नदी की गहराई
कभी पत्थरों की सुंदरता
कभी किले की तनहाई
चख लेती है कितने मंजर
तितली बनकर शोख नजर ॥ १ ॥
कभी नदी की गहराई
कभी पत्थरों की सुंदरता
कभी किले की तनहाई
चख लेती है कितने मंजर
तितली बनकर शोख नजर ॥ १ ॥
हर हफ्ते है नया ठिकाना
नक्शे पर इक नया निशाना
हो ना हो जाने की मनशा
बन जाए खुद-ब-खुद बहाना
बंधा ही रखू अपना बस्ता
आए बुलावा, चलू बेफिकर ॥ २ ॥
हो ना हो जाने की मनशा
बन जाए खुद-ब-खुद बहाना
बंधा ही रखू अपना बस्ता
आए बुलावा, चलू बेफिकर ॥ २ ॥
- अनामिक
(११-१४/१२/२०१६)
(११-१४/१२/२०१६)
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