अब ठिकाना मिल गया
दिल चाहता था उस जगह, छोटा सही, पर इक सुहाना
आशियाना मिल गया ॥ धृ ॥
अटके पडे थे सुर सभी गुमसुम लबों की कैद में
सोए हुए थे गीत भी सूखी कलम की गोद में
इक बांसुरी गूँजी अचानक,
बेजुबाँ इस जिंदगी को इक तराना मिल गया
आशियाना मिल गया ॥ १ ॥
सोए हुए थे गीत भी सूखी कलम की गोद में
इक बांसुरी गूँजी अचानक,
बेजुबाँ इस जिंदगी को इक तराना मिल गया
आशियाना मिल गया ॥ १ ॥
कुछ बीज धरती में दफन थे, बारिशों की प्यास में
बेताब थे अंकुर दबे, संजीवनी की आस में
बरसी घटा, कलियाँ खिली,
बंजर जमीं को आज फूलों का खजाना मिल गया
आशियाना मिल गया ॥ २ ॥
बेताब थे अंकुर दबे, संजीवनी की आस में
बरसी घटा, कलियाँ खिली,
बंजर जमीं को आज फूलों का खजाना मिल गया
आशियाना मिल गया ॥ २ ॥
मेहनत, लगन की, हौसले की जंग थी तकदीर से
पंछी इरादों के बंधे थे वक्त की जंजीर से
किस्मत हुई जो मेहरबाँ,
तोहफा मिला कुछ खास यूँ, मानो जमाना मिल गया
आशियाना मिल गया ॥ ३ ॥
पंछी इरादों के बंधे थे वक्त की जंजीर से
किस्मत हुई जो मेहरबाँ,
तोहफा मिला कुछ खास यूँ, मानो जमाना मिल गया
आशियाना मिल गया ॥ ३ ॥
- अनामिक
(१०-१२/११/२०१६)
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