21 नवंबर 2016

प्रतीक्षा

शांत आहे आज सागर
सुन्न आहे सांजवारा
लाट चंचल स्तब्ध आहे
मौन पांघरुनी किनारा
ये सखे परतून लवकर, अंत बघते ही प्रतीक्षा
बघ कसे अस्वस्थ सारे फक्त नसण्याने तुझ्या ॥ धृ ॥

रोजची ती पाखरांची धुंद किलबिल बंद आहे
पौर्णिमेच्या चांदव्याचे चांदणेही मंद आहे
आठवण येता तुझी होतो मनी नुसता पसारा
ये अता, चैतन्य पसरव गोड हसण्याने तुझ्या ॥ १ ॥

चार दिवसांचा दुरावा, युग उलटल्यासारखा
वाट बघुनी क्षीण झाल्या अंबरातिल तारका
बेचैन भिरभिरते नजर, पण सापडत नाही निवारा
तृप्त कर व्याकुळ मना अवचित बरसण्याने तुझ्या ॥ २ ॥

- अनामिक
(१३-२१/११/२०१६)

19 नवंबर 2016

क्या पसंद आए

खुदा ही तय करे, किसको किसी में क्या पसंद आए
किसे रंग-रूप, किसको मखमली काया पसंद आए

किसे तीखी निगाहें, शरबती आँखें लुभाती हैं
किसे लहराती जुल्फों का घना दर्या पसंद आए

किसी को गाल की लाली, किसे काजल सुहाता है
किसे नाजुक लबों की सुर्ख पंखुडियाँ पसंद आए

किसे नखरें पसंद, कोई अदाओं का है दीवाना
किसे सिंगार, झुमकें, चूडियाँ, बिंदिया पसंद आए

ये सब कुछ हो न हो तुझ में, मुझे ना फर्क पडता है
मुझे बस सादगी तेरी, शर्मो-हया पसंद आए

- अनामिक
(२८/१०/२०१६, १८,१९/१२/२०१६)

12 नवंबर 2016

आशियाना

गुमराह पत्ते की तरह था उड रहा सपना पुराना
अब ठिकाना मिल गया
दिल चाहता था उस जगह, छोटा सही, पर इक सुहाना
आशियाना मिल गया                                  ॥ धृ ॥

अटके पडे थे सुर सभी गुमसुम लबों की कैद में
सोए हुए थे गीत भी सूखी कलम की गोद में
इक बांसुरी गूँजी अचानक,
बेजुबाँ इस जिंदगी को इक तराना मिल गया
आशियाना मिल गया                                  ॥ १ ॥

कुछ बीज धरती में दफन थे, बारिशों की प्यास में
बेताब थे अंकुर दबे, संजीवनी की आस में
बरसी घटा, कलियाँ खिली,
बंजर जमीं को आज फूलों का खजाना मिल गया
आशियाना मिल गया                                  ॥ २ ॥

मेहनत, लगन की, हौसले की जंग थी तकदीर से
पंछी इरादों के बंधे थे वक्त की जंजीर से
किस्मत हुई जो मेहरबाँ,
तोहफा मिला कुछ खास यूँ, मानो जमाना मिल गया
आशियाना मिल गया                                  ॥ ३ ॥

- अनामिक
(१०-१२/११/२०१६)