28 अक्तूबर 2016

अचानक ही नही होता

गज़ल का जनम कागज़ पर अचानक ही नही होता 
भला इन्सान यूँ शायर अचानक ही नही होता 

गिरे जब एक चिंगारी, कई पत्तें सुलगते हैं 
धुआँ खामोश जंगल भर अचानक ही नही होता 

न जाने मुश्किलें कितनी नदी है पार कर आती 
खुशी से चूर तब सागर अचानक ही नही होता 

सितारें जल रहे हैं चाँद की ख्वाइश में सदियों से 
उजागर रात में अंबर अचानक ही नही होता 

मोहब्बत है नशा ज़ालिम, ज़रा धीमे ही चढती है 
असर इसका भले दिल पर अचानक ही नही होता 

- अनामिक 
(२३/०९/२०१६ - २८/१०/२०१६)

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