29 सितंबर 2016

नदी जिंदगी की

नदी जिंदगी की बही जा रही है
न जाने, गलत या सही जा रही है

भवर, आँधियाँ, बाढ, सूखा, बवंडर
सितम मौसमों के सही जा रही है

उछलकर, गरजकर, कभी शांत बहकर
बिना लब्ज सब कुछ कही जा रही है

पसंद की सभी मंजिलों को भुलाकर
न चाहा जहा, ये वही जा रही है

गलत ही सही, बस यही है तसल्ली
रुके बिन कही ना कही जा रही है

- अनामिक
(१४-२९/०९/२०१६)

23 सितंबर 2016

अंतर

विरून जाऊ दे अता अंतर तुझ्या-माझ्यातले
मिळून करुया दूर चल अडसर तुझ्या-माझ्यातले

येते मनी भरती तुझ्या हसण्यामुळे, रुसण्यामुळे
दबवू उसळणारे कसे सागर तुझ्या-माझ्यातले

घुसमट किती ही वाढली लटक्या अबोल्याने तुझ्या
चल शिंपडू गप्पांतुनी अत्तर तुझ्या-माझ्यातले

झटकून टाकू जळमटे किंतू-परंतूंची जुन्या
मिटवू अता संदिग्धता, जर-तर तुझ्या-माझ्यातले

त्या रेशमी प्रश्नास दडवावे किती हृदयामधे
ओठात येऊ दे खरे उत्तर तुझ्या-माझ्यातले

- अनामिक
(१६-२२/०९/२०१६)

19 सितंबर 2016

आखिरकार

इंतजार में थी बहार के, डाली ब्याकुल आज कट गयी
कब से इक दरबार में पडी अर्जी आखिरकार फट गयी ॥ धृ ॥

अर्सों से जो अडी हुई थी, धूल चाटती पडी हुई थी
शायद कूडेदान में कही
जिनके थे दस्तखत जरूरी, जिनकी थी मिलनी मंजूरी
उनको इसकी भनक तक नही

दीमक को ही लगी सुहानी, उस अर्जी में लिखी कहानी
सौ टुकडों के बीच बट गयी
अर्जी आखिरकार..                                      ॥ १ ॥

अश्कों की स्याही से उमडे, वो बिखरे शब्दों के टुकडें
कैसे भला जुटा पाऊ ?
उनसे लिपटी सब यादों का, अरमानों का, फर्यादों का
कैसे बोझ उठा पाऊ ?

शायद अंत यही था मुमकिन, बुरा हुआ या अच्छा, लेकिन
इक झूठी उम्मीद छट गयी
अर्जी आखिरकार..                                      ॥ २ ॥

- अनामिक
(१७-१९/०९/२०१६)

15 सितंबर 2016

एक मौका चाहिए

खामोश है दीवार, लब्जों का झरोका चाहिए
खुशबू बिखरने को हवा का एक झोंका चाहिए

काटों में दिखेंगे गुल, नजरिया बस अनोखा चाहिए
दो जिंदगीया जोडने बस एक रेखा चाहिए

हर रात की होगी सुबह, बस बात से होगी सुलह
गुलशन खिलेगा, बीज को बस एक मौका चाहिए

- अनामिक
(०९/०८/२०१६ - ११/०९/२०१६)

07 सितंबर 2016

कभी न सोचा था

फिजूल थे जो लम्हें, उनकी अब खल रही कमी है क्यों ?
जाल लगे थे जो धागें, अब लग रहे रेशमी हैं क्यों ?

कभी न सोचा था, जो किस्सें कभी याद भी आएंगे
आज उन्ही बातों की दिल में इतनी भीड जमी है क्यों ?

अपनी धुन में मस्त मगन सी बेफिकर चल रही थी जो
आज किसी अंजान मोड पे यूँ जिंदगी थमी है क्यों ?

कुछ न मायने रखते थे जो, गैरों में जिनकी गिनती थी
आज बेसबब ही पलखों पे उनके लिए नमी है क्यों ?

- अनामिक
(२६/०८/२०१६ - ०२/०९/२०१६)

01 सितंबर 2016

दिल-दिमाग की जंग

दिल-दिमाग की जंग में आखिर होगी किसकी जीत ?
इसी कश्मकश में रहता हूँ, जबसे हुई है प्रीत                 ॥ धृ ॥

दिल नादानी की फिराक में, दिमाग वैसे शरीफ है
दिल गुम है सपनें बुनने में, दिमाग सच से वाकिफ है
दिमाग देने लगे नसीहत, पर दिल गाए गीत                 ॥ १ ॥

दिल बोले, "उसके आगे से गुजर, शुरू कर आँखमिचोली"
दिमाग बोले, "अनदेखा कर, कदम मोड ले, बदल ले गली"
दिल बोले, "उसे देखकर मुस्कुरा जरा, पल जाए बीत"        ॥ २ ॥

दिल बोले, "बातें कर उससे", दिमाग बोले, "चुप्पी धर"
दिल बोले, "कुछ भेज संदेसा", दिमाग बोले, "जरा सबर कर"
दिल पूछे, "इतना सोचा तो कैसे मिलेगा मीत ?"            ॥ ३ ॥

दिल जलता रहता है भीतर, दिमाग कसक बुझाता है
दिल फुसलाता, उकसाता है, दिमाग फिर समझाता है,
"जो करता है पहल, उसीकी मात.. यही है रीत"             ॥ ४ ॥

- अनामिक
(२५/०८/२०१६ - ०१/०९/२०१६)