27 जुलाई 2015

कुछ ख्वाब

कुछ ख्वाब नैनों से तुम्हारे ही मुझे हैं देखने
कुछ गीत होठों से तुम्हारे गुनगुनाने हैं मुझे
कुछ मंजिले दुश्वार कदमों से तुम्हारे तै करू
कुछ घर पनाहों में तुम्हारी ही बनाने हैं मुझे ॥ धृ ॥

कुछ दिन सुनहरी धूप के
कुछ सर्द रातें चाँदनी
कुछ रेशमी घडियाँ हसीं
तुम संग मुझे है काटनी
तुम पर खजानें वक्त के हसते लुटाने हैं मुझे
जनमों-जनम के कुछ सफर तुम संग बिताने हैं मुझे ॥ १ ॥

कुछ धडकने मेरी थमी
दिल में तुम्हारे चल पडे
रेखा तुम्हारे हाथ की
तकदीर से मेरी जुडे
बाजू तुम्हारे सुर्ख मेहंदी से सजाने हैं मुझे
माथे तुम्हारे कुछ सिंदूरी रंग लगाने हैं मुझे ॥ २ ॥

- अनामिक
(०५/०६/२०१५ - २६/०७/२०१५)


07 जुलाई 2015

इक अर्ज़ी थी

इक अर्ज़ी थी कुछ सपनों की
कुछ अनकहे फसानों की
उम्मीदों की, अरमानों की
कुछ बेजुबाँ तरानों की

इक अर्ज़ी थी दिल से दिल तक
बंद दरों पे जैसे दस्तक
इक अर्ज़ी थी, जो पहुँचाती
धुंदले 'कल' से उजले 'कल' तक

इक अर्ज़ी थी, जिसको सींचा
पलखों की बूँदों में भिगाकर
शिद्दत से जी-जान लगाकर
नजरों में इक आस जगाकर

वो बस अर्ज़ी ना थी,
मेरे जजबातों का मुखडा थी
लेकिन उनके लिए महज़ वो
कागज़ का इक टुकडा थी

धूल जमी है उस अर्जी पर
गुजर गए लम्हों के पंछी
आज समय की शाखों पे वो
फडक रही है बनकर पर्ची

उस अर्ज़ी की सालगिरह पर
यादों के नजरानें हैं
कुछ अश्कों के गुलदस्तें हैं
कुछ बेबस मुस्कानें हैं

- अनामिक
(०७/०७/२०१५)

( On the occasion of completing a year of an Arji :
http://www.youtube.com/watch?v=v-0E0XjKJT8 )