04 जून 2015

याद

कैद कर लू अक्षरों में, या लबों से गुनगुना लू
पर न रुकती है तुम्हारी सर्द यादों की पवन
बंद कर लू खिडकियाँ दिल की सभी, फिर भी कही से
पहुँच जाती है तुम्हारे सुर्ख सपनों की किरन ॥ धृ ॥


इश्क को कमजोर कर दे, फासलों में वो न दम
दूर हो मीलों, मगर साया तुम्हारा हर कदम
आज भी ढूँढे तुम्हे तितली नजर की हर चमन ॥ १ ॥


पैंतरें तकदीर के दिल को समझ आतें नहीं
बिन-जुडे तुझमें फसे धागें सुलझ पातें नहीं
क्यों सभी नाकाम हैं तुम तक पहुँचने के जतन ?  ॥ २ ॥


- अनामिक
(३१/०५/२०१५ - ०४/०६/२०१५)