02 सितंबर 2014

कुछ रुके अल्फाज

कुछ रुके अल्फाज हैं, तट पर लबों के हैं खडे
पर नदी खामोशियों की पार कर सकते नही

कुछ छुपे जज़बात हैं, झाँकें नजर की आड से
रंजिशों की सरहदों को लांघ पर सकते नही

कुछ अधूरे ख्वाब हैं, उडते गगन में रात भर
है अमावस, चाँद की परछाई भी मिलती नही

इक दबी मुस्कान है, कब से लगाए दस्तकें
बंद दिल में एक भी खिडकी मगर खुलती नही

बावरी इक आस है, तकदीर की दहलीज पर
दीप जितने भी सजाए, लौ मगर जलती नही

- अनामिक
(मार्च, ऑगस्ट २०१४)