03 जून 2014

जंजीर

​मिलता न लडकर जंग भी जो दुश्मनों के तीर से
वो जख्म रांझे को मिला है दिल लगाकर हीर से

है रूबरू, पर बीच है दीवार सी खामोशियाँ
जब दिल करे, तो​ बात भी करनी पडे तसवीर से

इक नाम हाथों की लकीरों में लिखा है ही नही
ये जानकर भी खामखा लडता रहू तकदीर से

ये बंद गलियाँ छोड कबका ढूँढता मंजिल नयी
जकडा हुआ है दिल मगर उम्मीद की जंजीर से

- अनामिक
(२९/०५/२०१४ - ०३/०६/२०१४)