14 मार्च 2014

खबर ही नही है

बहाता रहे मेघ दिन रात बूँदे
जमीं पर भला कुछ असर ही नही है

भटकती फिरे रोज बेचैन तितली
कली को मगर कुछ खबर ही नही है

जले है दिया जूँझ कर आँधियों से
सितमगर खुदा को कदर ही नही है

छुपाए रखे लाख जज़बात पलखें
उन्हे पढ सके वो नजर ही नही है

- अनामिक
(१५/०१/२०१४ - १३/०३/२०१४)

06 मार्च 2014

न जाने

चला हूँ ढूँढने मंजिल, जहा तेरे ठिकाने हैं
मगर पाने तुम्हे चलने अभी कितने जमाने हैं

मुझे सूझे न इक तरकीब मिलने, बात करने की
तुम्हारे पास मुझको टालने के सौ बहाने हैं

लबों पर जिक्र भी मेरा कभी छिडने न देती हो
जुबाँ मेरी तुम्हारी तारिफों के ही तराने हैं

जतन कुछ भी करू, इक तीर भी पहुँचे न दिल के पार
सितारें भी दू तोहफे में, कहोगी ये पुराने हैं

करो, न करो मेहर, दिल से तुम्हारी ना ढले मूरत
बसा मंदिर तुम्हारे कौन पर ईश्वर न जाने है

- अनामिक
(२५/०२/२०१४ - ०६/०३/२०१४)