बहाता रहे मेघ दिन रात बूँदे
जमीं पर भला कुछ असर ही नही है
भटकती फिरे रोज बेचैन तितली
कली को मगर कुछ खबर ही नही है
जले है दिया जूँझ कर आँधियों से
सितमगर खुदा को कदर ही नही है
छुपाए रखे लाख जज़बात पलखें
उन्हे पढ सके वो नजर ही नही है
- अनामिक
(१५/०१/२०१४ - १३/०३/२०१४)
जमीं पर भला कुछ असर ही नही है
भटकती फिरे रोज बेचैन तितली
कली को मगर कुछ खबर ही नही है
जले है दिया जूँझ कर आँधियों से
सितमगर खुदा को कदर ही नही है
छुपाए रखे लाख जज़बात पलखें
उन्हे पढ सके वो नजर ही नही है
(१५/०१/२०१४ - १३/०३/२०१४)