18 अक्तूबर 2012

इक शाम काफी है

दिन सवरने के लिये इक शाम काफी है
दिल बहकने चाय के भी जाम काफी है

यूँ घनेरी भीड है, चेहरे हजारो है
जी मचलने के लिये इक नाम काफी है

ना लगे अल्फाज, ना कागज-कलम-स्याही
जो निगाहों ने लिखे पैगाम काफी है

क्यूँ भला हथियार से जीते जमीं दिल की
जो किया तीर-ए-नजर ने काम काफी है

शर्मिली मुस्कान से घायल करो ना यूँ 
इस हँसी पर कत्ल के इल्जाम काफी है

गर चिराग-ए-जिन मिले भी, ना दुआ माँगू
इस सुहानी साथ का ईनाम काफी है

सिलसिले खिलने लगे इन खंडरों में भी
यूँ चले बस, हो न हो अंजाम, काफी है

- अनामिक
(१४/१०/२०१२ - १७/१०/२०१२)