बह चला हूँ इक नदी में, अब किनारा हो न हो
डूब जाऊ या उभर पाऊ, सहारा हो न हो
ले चली किस ओर धारा, मंजिले किस छोर है
दिल जिसे तरसे युगों से, वो नजारा हो न हो
इक लहर है गुदगुदाती, दूसरी घायल करे
हर सितम चुपके सहू मैं, कोइ चारा हो न हो
दिल मचलता हर घडी, चंचल किसी मछली तरह
आहटों से भी बहकता, कुछ इशारा हो न हो
खींच ले भीतर मुझे रंगीन ख्वाँबों का भँवर
अब हकीकत की जमीं छूना दुबारा हो न हो
हर दिशा पानी सुनहरा, प्यास पर बुझती नही
चाँद की परछाइयाँ पीकर गुजारा हो न हो
यूँ सभी झरने, पुहारे तो समा लेती नदी
आँख से छलकी उसे बूँदे गवारा हो न हो
- अनामिक
(०३/०७/२०१० - २३/१०/२०१०)
डूब जाऊ या उभर पाऊ, सहारा हो न हो
ले चली किस ओर धारा, मंजिले किस छोर है
दिल जिसे तरसे युगों से, वो नजारा हो न हो
इक लहर है गुदगुदाती, दूसरी घायल करे
हर सितम चुपके सहू मैं, कोइ चारा हो न हो
दिल मचलता हर घडी, चंचल किसी मछली तरह
आहटों से भी बहकता, कुछ इशारा हो न हो
खींच ले भीतर मुझे रंगीन ख्वाँबों का भँवर
अब हकीकत की जमीं छूना दुबारा हो न हो
हर दिशा पानी सुनहरा, प्यास पर बुझती नही
चाँद की परछाइयाँ पीकर गुजारा हो न हो
यूँ सभी झरने, पुहारे तो समा लेती नदी
आँख से छलकी उसे बूँदे गवारा हो न हो
- अनामिक
(०३/०७/२०१० - २३/१०/२०१०)