15 अक्तूबर 2022

अलविदा

बस यही तक था सफर, था बस यही तक रासता
बस यही तक साथ था अपना, यही तक वासता

रब ने लिखी थी खुद कभी..
तकदीर ने फिर भी मिटा दी खामखा 
जनमों-जनम की खूबसूरत दासताँ

दो दूर के पहियें कभी लाए थे संग संजोग ने
चलेगी सवारी उम्रभर ये, राह को भी था पता

कुछ भी न थे शिकवें-गिलें, फिर भी बिछ गए फासलें
लगती न अपनों की नजर, तो खूब खिलता राबता

जो इस जनम ना फूल बन पायी मोहब्बत की कली
अगले जनम मिलकर सजाएंगे दिलों का गुलसिताँ

आवाज पहुचेगी न अब, जितनी भी दू दिल से सदा
तो अब निकलता हूँ सखी, लेकर अधूरा अलविदा

- अनामिक
(०६-१५/१०/२०२२) 

09 अक्तूबर 2022

ख्वाबों के बुलबुलें

साबुन के बुलबुलों के जैसे ख्वाब फुलाकर उडा रहा हूँ
इस पल है महफूज, न जाने कल का मंजर क्या होगा !..
बदमाश वक्त की हवा किस दिशा, किस रफ्तार बहेगी कल ?!..
इन अल्हड मेरे ख्वाबों का अंजान मुकद्दर क्या होगा ?!..

वो बस दिखने में नाजुक हैं, पर लड लेंगे पर्बत से भी
वो शोख हवा पे सवार होकर उड भी लेंगे अंबर तक
वो चकमा देंगे तूफानों को, पार करेंगे सागर तक
पर किस्मत जब बनकर आए खूँखार बवंडर, क्या होगा ?!..

इन अल्हड मेरे ख्वाबों का अंजान मुकद्दर क्या होगा ?!..

- अनामिक
(१९/०३/२०२२ - ०९/१०/२०२२) 

22 सितंबर 2022

समझदार सपनें

नादान हुआ करते थे जो.. बेफिक्र जिया करते थे जो
अफसानों के आसमान में खुलकर उडान भरते थे जो

पर जिंदगी के गुरू से कैसा पाठ न जाने सुन बैठे
वो अल्हड, चंचल सपनें मेरे समझदार क्यों बन बैठे ?!..

बेवक्त आँख के दरवाजे पे अब वो दस्तक देते नही
बेवजह रात की गलियारों में नींदों को छेडते नही

वो उडते उडते शायद गलती से वास्तव के नगर गए
और देख नजारा सच्चाई का सहम गए, फिर बदल गए

वो उस दिन से खामोश हुए यूँ, गीत न इक भी गा पाए
अरमानों के गुलशन में नया न इक भी बीज लगा पाए

कमजोर नही थे बिलकुल भी वो, आखिर तक वो डटे रहे
पर कौन बच सका है किस्मत से ? सपनें सारे बिखर गए

- अनामिक
(१८-२३/०९/२०२२) 

14 जुलाई 2022

​ऐ चाँद.. रुक जा

ऐ चाँद.. रुक जा और थोडी देर तू
ना छोडकर जा रोशनी की डोर तू
बेरंग अंधेरे आसमाँ का नूर तू
ऐ चाँद.. रुक जा और थोडी देर तू

ज्यादा नही, थोडा सही
बस और चंद पल तो ठहर
जब तक बुलाए ना सहर
तेरी चाँदनी के नूर से सवार लू दिल का नगर

या फिर ठहर कुछ और वक्त
कुछ दिन, महीनें, या बरस
या इक बडी लंबी सदी
या उम्र, सारी जिंदगी
तुझ संग लगेगा इक जनम भी जैसे इक प्यारी घडी

तू वक्त जितना भी रुके, कम ही लगे.. काफी नही
ऐ चाँद.. रुक भी जा हमेशा के लिए.. मत जा कही
रह जा यही

- अनामिक
(२२/०३/२०२२ - १४/०७/२०२२) 

22 जून 2022

जरा मैं, तू जरा मिलके

जरा मैं, तू जरा मिलके
करे हम इक नयी शुरुआत
ख्वाबों के नगर में इक सुहाना घर बनाएंगे
                        उमंगो की तरंगों से
                        भरेंगे रंग फिजा में यूँ
भरी पतझड में भी गुलजार सा मंजर बनाएंगे
जरा मैं, तू जरा मिलके सुहाना घर बनाएंगे || मुखडा ||

लबों से कुछ न कहना तू
जरा बस मुस्कुरा देना
सभी बातें तेरे दिल की बखूबी जान लूंगा मैं 
                        निगाहों के झरोखों से 
                        खुशी तेरी पढूंगा मैं
गमों की छींट भी तुझपे कभी गिरने न दूंगा मैं

बिखर जाऊ कभी मैं राह में, तू ही सहारा हो
तू ही मंजधार में मेरे सफीने का किनारा हो

न कुछ मेरा, न तेरा हो
मिले जो भी, हमारा हो
चलेंगे हर कदम संग, जिंदगी सुंदर बनाएंगे 
                        कयामत तक हमारा साथ हो, 
                        तो क्या नही मुमकिन ?
की रेगिस्तान को भी प्रीत का सागर बनाएंगे
जरा मैं, तू जरा मिलके सुहाना घर बनाएंगे || अंतरा ||

- अनामिक
(१३/०८/२०२१ - २२/०६/२०२२) 

15 जून 2022

​भगदौड काफी हो गयी

भगदौड काफी हो गयी.. दिल कह रहा अब, बस हुआ
जो धुंद सुहानी थी फिजा में, बन गयी है अब धुआ

चलकर हजारों मील भी आगे दोराहे हैं नये
दौलत समय की खर्च दी बस एक सपनें के लिए

करती रही लहरें समय की वार, दिल ने सब सहा
बरसों सबर का बांध था मजबूत, पर अब ढह रहा

दिखता रहा आगे जजीरा, नाव बहती ही रही
इतने समंदर तर लिए.. की अब छोर की ख्वाइश नही

मैं इस जनम तक क्या, कयामत तक भी कर लू इंतजार
पर बेकदर इन महफिलों में ठहरने का दिल नही

अब सोचता हूँ, छोड दू तकदीर पे ही फैसलें
वरना न हासिल कर सकू, ऐसी कोई मंजिल नही

- अनामिक
(११-१५/०६/२०२२) 

10 जून 2022

चाँद आखिर चाँद है

है साफ.. पानी सा,
दुआओं सा, इबादत सा ​​
न जिसके रूप में कोई मिलावट
चाँद आखिर चाँद है ! 
                                पूरा कभी, आधा कभी 
                                होंगे, न होंगे दाग भी 
                                फिर भी है बेहद खूबसूरत 
                                चाँद आखिर चाँद है !
साज की, श्रृंगार की,
बाहरी दिखावे की नही है चाँद को कोई जरूरत
चाँद आखिर चाँद है !

माना, कठिन बिलकुल नही, बनना सितारों सा, मगर..
बनना जरूरी भी तो नही, अपना अलगपन छोडकर

गर चाँद भी झिलमिल सितारों की नदी में बह गया
तो चाँद में और बाकियों में फर्क ही क्या रह गया ?

है ये गुजारिश चाँद से,
"बदलाव की जद्दोजहद में
खो न दे अपनी नजाकत"
चाँद आखिर चाँद है !

भीनी सी शीतल चाँदनी ही चाँद की पहचान है
है चाँद सबसे ही जुदा.. उसमें ही उसकी शान है 

क्यों की..
चाँद आखिर चाँद है !

- अनामिक
(०७/०५/२०१९ - १०/०६/२०२२) 

01 जून 2022

पुन्हा गाठ व्हावी

उन्हाच्या मनी सावलीचे ठसे
सावलीच्या मनीही उन्हाचे कवडसे
तरी मौन हळवे हवेतून वाहे
कुणा ना कळे, व्यक्त व्हावे कसे

उन्हाने पुन्हा सावलीला स्मरावे
पुन्हा सावलीने उन्हा साद द्यावी
नभाने करावी निळीशार किमया
उन्हा-सावलीची पुन्हा गाठ व्हावी || धृ ||

किती त्या झळा तप्त भाळी उन्हाच्या
किती गारठा सावलीच्या तळाशी
किती एकटे ते परीघात अपुल्या
अता मात्र जवळीक व्हावी जराशी

जुनी रात्र सरुनी नवी पहाट व्हावी
उन्हा-सावलीची पुन्हा गाठ व्हावी || १ ||

किती लोटले ते हिवाळे, उन्हाळे
किती दाटले भावनांचे उमाळे
किती आर्त गाणी दडवली ऋतूंनी
किती साठले ते नभी मेघ काळे

सुरांना, सरींना खुली वाट व्हावी
उन्हा-सावलीची पुन्हा गाठ व्हावी || २ ||

- अनामिक
(३१/०३/२०२२ - ०१/०६/२०२२) 

24 मई 2022

है याद वो दिन आज भी

है याद वो दिन आज भी.. है आज तक जिसका असर 
पहली दफा टकराई थी इक-दूसरे से जब नजर 
जब हम अचानक आ गए थे रूबरू इक मोड पर 
कालीन जैसी बन गयी थी रोज की ही वो डगर 

इक-दूसरे को हम भले पहचानते भी थे नही 
फिर भी लगा था, दर्मियाँ है कुछ पुराना राबता 
जेसे निगाहों में लिखी थी अनकही इक दासताँ 

मुस्कान भीनी थी खिली शायद हमारे होंठो पर 
मन भी किया था बोलने का, लब्ज ना निकले मगर 
इक-दूसरे को उस समय पहचानते जो थे नही 

बस दो पलों का मेल था.. संजोग का सब खेल था 
उन दो पलों ने दो दिलों पर कर दिया गहरा असर 
भरकर जहन में वो घडी हम चल दिए अपनी डगर 

है याद वो दिन आज भी.. मुद्दतों के बाद भी.. 

- अनामिक 
(१२-२४/०५/२०२२)

29 अप्रैल 2022

ये वक्त है, या है नदी ?!

ये वक्त है, या है नदी ?!
किस ओर बहती जा रही ?..
रफ्तार इसकी तेज़ इतनी, है समझ के भी परे
जाने कहाँ ले जा रही ?..
​क्या कुछ बहा ले जा रही
कैसे उभर पाए भला, इक बार जो इसमें गिरे ? 
ये वक्त है, या है नदी ?!                            || धृ ||

चंचल पलों की रेत
मुठ्ठी से फिसलती जा रही
पलखें झपकते ही यहाँ
सदियाँ बदलती जा रही
ये वक्त क्यों माने न मद्धम जिंदगी के दायरें ? 
ये वक्त है, या है नदी ?!                            || १ ||

तैरे भला तो किस दिशा ?
ढूँढे जज़ीरा कौनसा ?
इस पार, या उस पार का, थामे किनारा कौनसा ?
सीखे कहाँ मंझधार में से लौटने के पैंतरें ?
ये वक्त है, या है नदी ?!                            || २ ||

चलते रहे बरसों मुसाफिर जिंदगी की रहगुज़र
पर खींच ले भीतर उन्हें जब वक्त का गहरा भवर
सीधे सयाने शख्स भी बन जाते हैं तब बावरे
ये वक्त है, या है नदी ?!                            || ३ ||

- अनामिक
(२३/०३/२०२२ - २९/०४/२०२२)

17 अप्रैल 2022

शुरुआत

ये वक्त के हैं फासलें.. 
या फासलों का वक्त है ?! 
पर फासलों से क्या कभी हो जाते कम जज़बात हैं ?! 

जब मुस्कुराती थी सहर 
खिलती चहकती सांझ थी 
उन यादों में गुम आज भी इक चाँदनी की रात है 

आए गए सावन कई 
बैसाख भी तो कम नही 
इक धूप की राहों में मुद्दत से रुकी बरसात है 

तकदीर के ही पैंतरें 
तकदीर के ही फैसलें 
कठपुतलियों के खेल में क्या जीत, और क्या मात है ?! 

इस ओर से निकली सदा 
उस छोर पहुँचेगी जरूर
कब, कैसे आए लौटकर.. संजोग की ही बात है 

उस मोड आकर थम गयी थी 
इक सुरीली दासताँ 
जिस मोड पर ऐसा लगा था, हाँ यही शुरुआत है 

- अनामिक 
(९-१४/०२/२०२२, १७/०४/२०२२) 

15 अप्रैल 2022

आसान ही क्या है भला ?!

मक्सद बिना जिंदा रहे, वो जान ही क्या है भला ?!
जो चैन से सोने दे, वो अरमान ही क्या है भला ?!

क्यों फिक्र है, की कोशिशों का फायदा कुछ हो, न हो ?!
इक बार करके देख ले.. नुकसान ही क्या है भला ?!

जन्नत तलक जो ले चले, वो राह मुश्किल है बडी
पर जिंदगी की दौड में आसान ही क्या है भला ?!

यूँ ही न किस्मत से खुलेंगी आसमाँ की खिडकियाँ
घायल न कर दे पंख जो, वो उडान ही क्या है भला ?!

जब गम चखो, तो ही खुशी का स्वाद चलता है पता
अश्कों बिना खिल जाए, वो मुस्कान ही क्या है भला ?!

तूफान आते हैं टटोलने कश्तियों का हौसला
लहरों से माने हार, वो इन्सान ही क्या है भला ?!

पूरी करे 'वो' सब मुरादें, पहले शिद्दत तो दिखा
बस मन्नतों से माने, वो भगवान ही क्या है भला ?!

- अनामिक

10 मार्च 2022

सादगी

​जो मोगरे में है महक, दिलकश गुलाबों में कहाँ ?!.. 
जो है नजाकत चाँद में, झिलमिल सितारों में कहाँ ?!.. 

जो जुगनुओं में है चमक, उजले सवेरों में कहाँ ?!.. 
जो बासुरी में है मिठास, झन झन गिटारों में कहाँ ?!.. 

जो बात खामोशी जताए, सौ जवाबों में कहाँ ?!.. 
जो राज पलखों में छुपे, परदों-नकाबों में कहाँ ?!.. 

जो आँच आंगन के दिये में है, शरारों में कहाँ ?!.. 
जो है अदब बहती नदी में, आबशारों में कहाँ ?!.. 

जो रंग हैं नन्ही तितलियों में, इंद्रधनुषों में कहाँ ?!.. 
जो सादगी में नूर है, सोला सिंगारों में कहाँ ?!.. 

- अनामिक 
(०७-१८/११/२०२१, १०/०३/२०२२) 

बेसमय के अश्क

ये बेसमय के अश्क तेरे           बेसबब तो हैं नही
गर दर्द छलका है नयन से        टीस गहरी है कही

"बस यूँ ही" कहकर टाल दे तू,   ना बता, क्या है कमी
पर देखकर रिमझिम नयन        मेरी फिकर है लाजमी
ये बेसमय के अश्क तेरे                     || मुखडा ||

गुमसुम रहे, कुछ ना कहे         बेचैन या तनहा रहे
पढकर नजर पहचान लू           तू जो चुभन भीतर सहे

मन में उठे क्या पीड़ मेरे          कर न पाऊ मैं बयाँ
जब अश्क की इक बूँद भी        तेरी निगाहों से बहे

इन मोतियों के मोल का           कुछ इल्म ही तुझको नही
ज़ाया न हो ये, इस लिए           कर दू न्योछावर जर-जमीं
ये बेसमय के अश्क तेरे                       || अंतरा-१ ||

ये दो नयन, हैं दो सितारें          पहचान इनकी रोशनी
तू ढूँढ ले खुदकी सहर            अंधियारा हो, या चाँदनी

ये ही दुआ मांगू खुदा से           खुश रहे तू हर घडी
खिलती रहे मुस्कान की            तेरे लबों पे पंखुडी

तू जिस डगर रख दे कदम        हो जीत ही आगे खडी
तू हौसलों की डोर से              सौ ख्वाब बुन ले रेशमी
ये बेसमय के अश्क तेरे                    || अंतरा-२ ||

- कल्पेश पाटील 
(०१/०५/१९ - १०/०३/२२) 

07 सितंबर 2021

जो ख्वाब नैनों में बसा है

जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको​​ छोड दू ?!
मैं हौसले से ख्वाइशों को मंजिलों से जोड दू

आँधी मिले, या जलजलें
ना ही रुकेंगे काफिलें
मैं वक्त पर होकर सवार तकदीर का रुख मोड दू
जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको​​ छोड दू ?!  || मुखडा ||

डर क्या अंधेरे का उसे ?!
जिसकी नजर में रोशनी
उडने गगन भी कम उसे
जिसने बुलंदी हो चुनी

गर ठान लू, पग में बंधी सब बेडियों को तोड दू
जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको​​ छोड दू ?!  || अंतरा-१ ||

इन्सान हूँ.. थककर कभी,
रुककर कभी, झुककर कभी
दो-चार लम्हें बैठ जाऊ
इसका मतलब ये नही की
हार माने टूट जाऊ

फिर से उठू, और जीत के संग बात अपनी छेड दू
जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको​​ छोड दू ?!  || अंतरा-२ ||

- अनामिक
(१४/०९/२०१९ - ०७/०९/२०२१) 

01 सितंबर 2021

ये नैना क्या कुछ बोल रहे हैं

​ये छुपा रहे हैं काफी कुछ
ये जता रहे हैं काफी कुछ
ये खामोशी का चिलमन ओढे बता रहे हैं काफी कुछ 

ये जजबातों से भरा समंदर दो पलखों पे तोल रहे हैं 
ये नैना क्या कुछ बोल रहे हैं           || मुखडा || 

इनमें मुश्किल से सवाल हैं 
इनमें अनजाने जवाब हैं 
आसान नही, पढकर देखो, 
ये पहेलियों की किताब हैं 

कुछ राज दबे, कुछ रिवायतें 
कुछ कहानियाँ, कुछ हकीकतें 
कुछ उम्मीदें, कुछ शिकायतें 
कुछ गुजारिशें, कुछ इजाजतें 

ये कई अनकही बातों का जादुई पिटारा खोल रहे हैं 
ये नैना क्या कुछ बोल रहे हैं          || अंतरा-१ || 

इनमें धरती की व्याकुलता, 
इनमें अंबर की फुहार भी 
इनमें साहिल का सन्नाटा, 
इनमें लहरों की पुकार भी 

गहराई इनकी नाप सके, वो हुनर किसी के पास नही 
गर झाक लिया इनमें गौर से, उभरने की कुछ आस नही 

आवाज लगाकर बुला रहे हैं, या दूर से टटोल रहे हैं ?! 
ये नैना क्या कुछ बोल रहे हैं             || अंतरा-२ || 

- अनामिक 
(२९/०८/२०२१ - ०१/०९/२०२१) 

03 अगस्त 2021

हरियाली का दौर नही

धुआँधार हैं बरसातें, पर हरियाली का दौर नही
जंगल की पतझड मिटा सके, इतनी भी वो घनघोर नही 

वैसे तो कुछ कमी नही सावन की बौछारों में, पर.. 
मन का तहखाना भिगा सके, उनमें अब तक वो जोर नही 

बादल-बिजली बजा रहे हैं ढोल-नगाडें जोश में, पर.. 
सोते सपनों को जगा सके, इतना भी उनका शोर नही 

रिमझिम बरसे.. टिप-टिप बरसे.. जमकर भी बरसे बरखा, पर.. 
पंख पसारे नाच दिखाने राजी इक भी मोर नही 

अंबर से धरती तक आती लाख लकीरें दिखती हैं जो 
बूँदें है बस.. जोड सके दोनों को ऐसी डोर नही 

कब बरसेगा ? कब सूखेगा ? कहा रुकेगा ? कहा बहेगा ? 
जीवन है बारिश का पानी.. जिसका कोई ठोर नही 

- अनामिक 
(१७/०६/२०२१ - ०३/०८/२०२१) 

31 जुलाई 2021

हम मिले तुम मिले

इक मुलाकात थी     चाँद-तारों तले
खुल गयी बंदिशें      मिट गए फासलें
हम मिले तुम मिले

चाँदनी की लहर यूँ भिगाकर गयी
धुल गये दर्मियाँ थे जो शिकवें-गिलें
हम मिले तुम मिले   || मुखडा ||

रूबरू हम हुए       जैसे सागर-नदी
आइने में दिखी       जैसे खुद की छवी

मिल गए हाथ यूँ      जिंदगी की कडी
धडकनों की लडी    दिल से दिल तक जुडी

जब नजर से नजर की हुई गुफ्तगू
मन के आँगन छनकने लगी पायलें
हम मिले तुम मिले || अंतरा-१ ||

लब्ज खामोश थे      गा रहे थे नयन
प्रीत की धुन पे हम-तुम हुए थे मगन

छू गये रूह को      सुर हुए यूँ बुलंद
हो रहा हो जमीं-आसमाँ का मिलन

रात की ओंस में घुल गयी साँस यूँ
जुगनुओं के नगर ख्वाब उडने चले
हम मिले तुम मिले || अंतरा-२ ||

- कल्पेश पाटील
(०८/०५/२०२१ - ३१/०७/२०२१)

24 जुलाई 2021

फिर से

फिर से खुलेगा आसमाँ 
आजाद होगी इक सहर 
फिर से अंधेरी रात ओढेगी उजाले की चुनर 
फिर से उडेंगे ख्वाइशों की तितलियों के काफिलें 
फिर से चलेंगे हर दिशा में रोशनी के सिलसिलें 
फिर से खुलेगा आसमाँ..           || मुखडा || 

फिर से फिजा में गूँजेगी अल्हड पवन की बासुरी 
फिर से सजेंगी डालियों पर कोयलों की महफिलें 
फिर से गुलों पर रंगों से मौसम लिखेगा शायरी 
फिर से बगीचों में खुलेंगी इत्तरों की बोतलें 
फिर से खुलेगा आसमाँ..         || अंतरा-१ || 

छनछन बजेंगी वादियों में बारिशों की पायलें 
मासूम चिडियों की चहक से खिल उठेंगे घोंसलें 
गुमसुम मुकद्दर पर चलेगी वक्त की जादूगरी 
होंगी मुकम्मल राह भटकी जिंदगी को मंजिलें 
फिर से खुलेगा आसमाँ..         || अंतरा-२ || 

- अनामिक 
(२४/११/२०२० - २४/०७/२०२१)

15 जून 2021

सपनें तो सपनें होते हैं

सपनें तो सपनें होते हैं
अल्हड और भोले होते हैं 
अकल कहा होती है इनको ?! 
बिलकुल पगले होते हैं 

कहा समझ आता है इनको मुमकिन-नामुमकिन का अंतर ?! 
अफसानों के दर्या में डुबकियाँ लगाते हैं ये अक्सर 

कुछ सपनें मन के पिंजरे में बंधे हुए रह जाते हैं 
बेफिक्री के पंख लगाकर कुछ सपनें उड जाते हैं 

        कुछ सपनें अखियों के रस्ते गालों पर बह जाते हैं 
        कुछ सपनें आसमान छूने किस्मत से लड जाते हैं 

कुछ सपनें वास्तव की गहरी मिट्टी में गड जाते हैं 
कुछ सपनें अंकुर बनकर धरती चीरकर दिखाते हैं 

        कुछ सपनें मासूम कली से खिले बिना झड जाते हैं 
        कुछ सपनें मोगरे की तरह गुलशन को महकाते हैं 

जो भी हो, जैसे भी हो ये.. 
नादाँ ही रहने दो इनको 
मनमौजी झरनों के जैसे बेमंजिल बहने दो इनको 

गलती से भी समझदार या होशियार ये बन जाए तो..
मनुष्य ये कहलाएंगे..
सपनें थोडी रह पाएंगे ?! 

सपनें तो तारों जैसे अंधियारी रात चमकते हैं 
इसीलिए तो शकल बिना भी बेहद सुंदर दिखते हैं 

- अनामिक 
(०१/०५/२०२१ - १५/०६/२०२१)

01 जून 2021

सब कह दिया

पलखों के चिलमन ने    नैनों के दर्पण ने
नजरों से नजरों ने       सब कह दिया

गालों की सुर्खी ने       मुस्काते चेहरे ने
बिन बोले अधरों ने      सब कह दिया

दर्या की महफिल में     ख़्वाबीदा साहिल से
जज़बाती लहरों ने       सब कह दिया

खुशबू की बोली में      धरती के कानों में
बरखा बौछारों ने        सब कह दिया 
|| मुखडा ||

दिन था वो, या था      कोई अफसाना
जिस दिन किस्मत से ही मिल पाए थे हम

दो कदमों का, पर     दो जनमों जितना
रस्ता दो पल में संग चल पाए थे हम

नैनों से छलकी         खुशियों की भीनी
रिमझिम ने सब कह दिया

दिल की तारों ने        धडकन में छेडी
सरगम ने सब कह दिया

आहिस्ता, होले से      छूकर एहसासों को
हाथों के रेशम ने       सब कह दिया

दो दिल की गलियों में खिलते गुलमोहरों से
ख्वाबों के मौसम ने    सब कह दिया
|| अंतरा-१ ||

फिर कब हो मिलना   मुश्किल था कहना
काश यूँ ही सदियों चलती अपनी बातें

बोझल थी साँसें         पर हसते हसते
निकले हम लेकर यादों के गुलदस्तें

आगे बढकर भी        पीछे ही मुडते
कदमों ने सब कह दिया

सपनों में हर दिन      मिलते रहने की
कसमों ने सब कह दिया
|| अंतरा-२ ||

- अनामिक
(१३/०६/२०२० - ०१/०६/२०२१) 

23 जुलाई 2020

ये नैना

ये आसमान, या दर्या है ?
मीठे पानी की झीलें हैं ?
या टिमटिम करते हीरें हैं ?
ये नैना कितने नीले हैं

                                ये तारों से चमकीले हैं
                                ये छुइमुइ से शर्मीले हैं
                                ये नटखट छैल-छबीले हैं
                                ये नैना कितने नीले हैं 
                                || मुखडा ||

ये अंतरिक्ष की गहराई
ये छुपाए रखे राज कई
ये वास्तव, या आभास कोई ?
ये देन खुदा की खास कोई

                                ये अजब जाम हैं शरबत के
                                पीकर भी बुझती प्यास नही
                                ये लब्जों बिन ही गजल सुना दे
                                बन्सी से भी सुरीले हैं
                                ये नैना कितने नीले हैं 
                                || अंतरा-१ ||

बिन बाणों के ये वार करे
दिल कितनों के बेजार करे
ये नजरों के कजरे से ही
अंजाने कई शिकार करे

                                जो कत्ल हुए इनसे, उनको भी
                                ये अमृत के प्यालें हैं
                                जो डूब गए इनमें, उनकी तो
                                रातों में भी उजालें हैं
                                ये नैना कितने नीले हैं 
                                || अंतरा-२ ||

- अनामिक
(०९/०६/२०२०, २३/०७/२०२०)

25 अप्रैल 2020

कह दे ना

कह दे ना.. कह दे ना..
दिल में ना रहने दे
अधरों से लब्जों की
लडियाँ अब बहने दे

गुमसुम तू, गुपचुप मैं
खामोश है ये घडियाँ
जजबातों की ठहरी
बहने दे अब नदियाँ

कह दे ना.. कह दे ना..
दिल में जो है, कह दे..    || मुखडा ||

तरसा हूँ अल्हड से सुर तेरे सुनने
पलखों पे झलके हैं तेरे ही सपनें 

अखियन के आँगन में आए ना निंदिया
पल पल भी लगता है तुझ बिन यूँ सदियाँ

जलता मन, सावन की
बसरा भी दे झडियाँ
जजबातों की ठहरी
बहने भी दे नदियाँ

कह दे ना.. कह दे ना..
दिल में ना रहने दे
कह दे ना.. कह दे ना..
दिल में जो है, कह दे..     || अंतरा ||

- कल्पेश पाटील
(१०-२५/०४/२०२०)

14 जनवरी 2020

तू जो मिला

ठहरा हुआ था बेसबब
मंजिल बिना मेरा सफर
तू जो मिला संजोग से
वीरान तनहा राह पर
                                चलने लगे फिर सिलसिलें
                                मिलने लगी गलियाँ नयी
                                खिलने लगी कलियाँ गुलाबी
                                जिंदगी की डाल पर
रूठी हुई तकदीर को
रब का इशारा मिल गया
तू जो मिला, यूँ चाँद को
झिलमिल सितारा मिल गया
                                सोचा न था, बन जाएगा
                                तू ही जरूरी इस कदर
                                तेरे सिवा दूजा न अब
                                दिल को गवारा हमसफर    || मुखडा ||

सहमे हुए थे सुर सभी
तुझ संग तराने बन गए
बेनूर थे मंजर सभी
दिलकश नजारे खिल गए
                                पतझड भरे गलियारों को
                                रिमझिम फुहारें मिल गयी
                                बरसों बिछे अंधियारों में
                                सूरज हजारों खिल गए
ये जिंदगी थी बेदिशा
मक्सद दुबारा मिल गया
तू जो मिला, गुमराह कश्ती को
किनारा मिल गया                                            || अंतरा ||

- अनामिक
(१३/१२/२०१९ - १४/०१/२०२०)

05 जनवरी 2020

ना ही झुकेगा फैसला

ना ही झुकेगा फैसला
ना ही थकेगा हौसला
ना ही रुकेगा ख्वाइशों के पंछियों का काफिला

ना दुश्मनों की है फिकर
ना साजिशों का है असर
भयभीत होकर छल-कपट से ना खतम होगा सफर

हो राह शोलों से भरी
ना लडखडाएंगे कदम
पुख्ता इरादें हो अगर
क्या ही डराएंगे जखम

मैं आँधियों से हार जानेवालों में से हूँ नही
मैं जलजलों से मात खानेवालों में से हूँ नही

- अनामिक
(२८/१२/२०१९, ०५/०१/२०२०)

इक अजब सी बेकरारी

इक अजब सी बेकरारी.. इक अजब सी है चुभन
क्या पता, क्या खल रहा ? है खामखा बेचैन मन

जैसे हवा में घुल गया हो साँस में चुभता धुआ
जैसे गगन में बादलों ने सूर्य पे कब्जा किया

जैसे समंदर ने दबाई हो लहरों की आँधियाँ
जैसे क्षितिज पे चीखती हो सांज की खामोशियाँ

जैसे लबों में घुट रहा हो राज कोई अनकहा
जैसे भटकता ख्वाब नैनों में दफन है हो रहा

जैसे कलम में सूख गयी हो इक अधूरी दासताँ
जैसे दुआएँ खो गयी हो मंदिरों का रासता

है इक अजब सी बेकरारी..

- अनामिक
(२२/०५/२०१९, ०५/०१/२०२०)

28 अगस्त 2019

मैं सूरज की परछाई

मैं सागर की गहराई हूँ
मैं अंबर की ऊँचाई भी
मैं किरणों की अपार ऊर्जा
मैं सूरज की परछाई

मैं संध्या की मोहकता भी
मैं साहिल की विनम्रता भी
मैं लहरों की चंचलता भी
मैं बिजली की शहनाई

मैं धरती की विशालता भी
मैं पानी की शीतलता भी
मैं बादल की नरमाई भी
मैं पत्थर की कठिनाई

मेरे कदम रोककर दिखाओ
या हौसला तोडकर दिखाओ
नन्ही समझ न धोखा खाओ
मैं सूरज की परछाई

- अनामिक
(२६,२८/०८/२०१९)

24 अगस्त 2019

हवा के सर्द झोंके सी

हवा के सर्द झोंके सी तू लहराती चली आए 
बहे दिल जर्द पत्ते सा, गगन में सुर्ख ख्वाबों के 

घडीभर ही सही, छूकर तू इठराती चली जाए 
उडे दिल शोख तितली सा, बगीचों में गुलाबों के      || मुखडा || 

अचानक ही तू आते ही 
शहद सी मुस्कुराते ही 
लगे यूँ, धूप में जलती गिरे बौछार सावन की 
जरा खट्टी, जरा मीठी 
भले दो-चार बातें ही 
लगे यूँ, बिखर जाए खुशबुएँ हर ओर चंदन की 

बहकने फिर लगे दिल बिन पिए ही, बिन शराबों के 
उडे दिल शोख तितली सा, बगीचों में गुलाबों के      || अंतरा-१ || 

तू पतझड में बहारों सी 
अमावस में सितारों सी 
की रेगिस्तान में आए तू लेकर बाढ नदियों की 
बहोत कुछ बात हो ना हो 
उमरभर साथ हो ना हो 
लगे यूँ, जिंदगी जी ली घडीभर में ही सदियों की 

न फिर कुछ मायने रहते सवालों के, जवाबों के 
उडे दिल शोख तितली सा, बगीचों में गुलाबों के      || अंतरा-२ || 

- अनामिक 
(२०/०५/२०१९ - २४/०८/२०१९) 

04 अगस्त 2019

चलता रहे यूँ ही सफर

जो साथ तेरे है शुरू
दो-चार लम्हों का सफर
ना खत्म हो, ​​चलता रहे यूँ उम्रभर 
                जो बात तुझसे है छिडी 
                दो लब्ज, या इक दासताँ 
                वो गीत सी घुलती रहे शामो-सहर || मुखडा ||

तू बिन कहे भी मैं सुनू
खामोशियों की भी जुबाँ
तेरी उदासी, या खुशी
बेचैनियाँ, या ख्वाइशें 
                जिनसे खिले गुमसुम लबों पे 
                मुस्कुराहट की कली 
                ना इल्म भी जिनका तुझे 
                मैं सब करू वो कोशिशें

तेरे नयन के ख्वाबों में
मैं हौसलों के रंग भरू 
                मंजिल चुने तू, और बनू मैं रहगुजर 
                ना खत्म हो, चलता रहे यूँ ही सफर || अंतरा ||

- अनामिक
(०४/०८/२०१९) 

31 जुलाई 2019

खामोशियाँ

खामोशियाँ.. खामोशियाँ.. खलती रहे खामोशियाँ
अंगार सी बुझती रहे, जलती रहे खामोशियाँ

क्यों बात होकर भी बहोत बढती रहे खामोशियाँ
क्यों साथ होकर दर्मियाँ चलती रहे खामोशियाँ

क्यों बेरुखी के रूप में बहती रहे खामोशियाँ
क्यों कुछ न कहकर भी बहोत कहती रहे खामोशियाँ

क्यों सांज की दहलीज पर मिलती रहे खामोशियाँ
क्यों रात की चादर तले छलती रहे खामोशियाँ

खामोशियाँ.. खामोशियाँ.. खलती रहे खामोशियाँ
चुभते धुएँ सी साँस में घुलती रहे खामोशियाँ

- अनामिक
(३०,३१/०७/२०१९)

25 जुलाई 2019

एक पहेली

पहेलियों ही पहेलियों से भरी पडी है दुनिया सारी
पर जितनी भी पहेलियाँ हो, चाहे तरह तरह की, न्यारी
सौ पहेलियाँ सुलझाने में मुझे न कुछ दिलचस्पी है
सुलझा लू वो एक पहेली, बस इतना ही काफी है

एक पहेली..
अंतरिक्ष के तारों की नक्काशी जैसी
जितनी दिलकश, उतनी गहरी
जिसका कोई छोर नही
भीतर कोलाहल या संगीत
बाहर बिलकुल शोर नही

एक पहेली..
मोरपंख पे रची हुई रंगोली जैसी
लुभावनी, पर जटिल बडी ही
नाजुक, पर कमजोर नही

जितनी मोहक, उतनी मुश्किल
एक पहेली.. जो सुलझाने
उम्र खर्च दू, तो भी कम है
मिल जाए हल, ना मिल पाए
उलझा रहू उम्रभर यूँ ही
ना भी सुलझी, ना गम है

- अनामिक
(२९/०५/२०१९ - २५/०७/२०१९)

27 मई 2019

पहेलियाँ

पहेलियाँ ही पहेलियाँ हैं
शख्सों की, शख्सियतों की
चेहरों के परदों के पीछे छुपी हुई​​ असलियतों की

चलती-फिरती पहेलियाँ हैं इन्सानों के लिबास में
उलझ न जाओ खुद ही इनको सुलझाने के प्रयास में

किसको जानो ? कितना जानो ?
जिसको भी, जितना भी जानो.. 

जितनी भी नापो गहराई, उससे भी गहरा पानी है
जितनी भी मानो सच्चाई, बिलकुल अलग कहानी है

एक पहेली बूझो तो, झटसे दूजी भी हाजिर है
जिसको जितना समझो भोला, वो उतना ही शातिर है

प्याज की घनी परतों जैसे
सारे परदें खुल जाए जब
मन में थी जो छवी बनी,
उससे कुछ ना मिल-जुल पाए जब

जितनी भी दो मन को तसल्ली
सुद-बुद से समझी और परखी जितनी भी झुठला दो बातें
सच तो सच ही आखिर है

यहा पहेली बनकर जीने में हर कोई माहिर है

- अनामिक
(२६,२७/०५/२०१९)

17 मई 2019

लिखेंगे और ज्यादा

रहे स्याही-कलम जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा
न हो सपनें खतम जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा

खिले खुशियाँ, या बरसे गम.. लिखेंगे और ज्यादा
रहे हम कल, रहे ना हम.. लिखेंगे और ज्यादा

किसी मुस्कान की सरगम.. किसीके नैन की शबनम
किसीकी जुल्फ का रेशम.. लिखेंगे और ज्यादा

कोई पढकर सराहे.. तो लिखेंगे और ज्यादा
या पढना भी न चाहे.. तो लिखेंगे और ज्यादा

जले दिल की शमा जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा
न छू ले आसमाँ जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा

- अनामिक
(१६/०५/२०१९)

14 मई 2019

शर्त

मैं नींद अपनी हार दू.. सुख, चैन, राहत हार दू 
तेरी गुलाबी मुस्कुराहट पे मैं जन्नत हार दू 

दिल हार दू तुझपे सखी मैं.. होश, सुद-बुद हार दू 
तेरी छवी के सामने खुदका वजूद हार दू 

दौलत लगा दू दाव पे.. पूँजी, कमाई हार दू 
तुझसे छिडी छोटी-बडी हर जंग-लडाई हार दू 

दिन क्या ? महीनें क्या ? उमर भी गुजार दू तेरे लिए 
मैं मुस्कुराकर जिंदगी भी हार दू तेरे लिए 

क्या कुछ न न्योछावर करू मैं ?! फिर सखी तू ही बता.. 
तुझसे लगी इक "शर्त" भी क्या जीतने की चीज है ?! 

कुछ जीतना ही है सखी, दिल में जगह मैं जीत लू 
तेरी खुशी की, मुस्कुराहट की वजह मैं जीत लू 

जजबात तेरे जीत लू मैं.. साथ तेरा जीत लू 
बनने जनम का हमसफर मैं हाथ तेरा जीत लू 

छू लू तेरे अरमान.. ख्वाबों का जहाँ मैं जीत लू 
फिर पूछ लू वो इक सवाल.. जवाब "हाँ" मैं जीत लू 

क्या कुछ नही है हारने को, जीतने को ?! फिर बता.. 
इक "शर्त" मामूली भला क्या जीतने की चीज है ?! 

तू जीते, या मैं जीत लू.. ये दोनो इक ही बात है 
तेरी खुशी ही, जीत ही मेरी मुकम्मल जीत है 

- अनामिक 
​(१५/०२/२०१९ - ०४/०३/२०१९, १४/०५/२०१९) ​​

12 मई 2019

पाहिले तुज ज्या क्षणी

थक्क झालो, दंग झालो
स्तब्ध झालो, गुंग झालो
मग्न झालो, मुग्ध झालो
तृप्त झालो, लुब्ध झालो

तप्त ग्रीष्माच्या दुपारी
सर बरसली श्रावणी
अप्सरेसम रुप तुझे ते
पाहिले मी ज्या क्षणी || धृ ||

                        भरजरी लावण्य लेवुन
                        तू अशी येता समोरी
                        उमटले प्रतिबिंब गहिरे
                        भारलेल्या अंतरी

                        स्वर्गलोकातून अवतरली
                        परी जणु अंगणी
                        थक्क झालो, दंग झालो
                        पाहिले तुज ज्या क्षणी || १ ||

चांदण्या पडल्या फिक्या
लखलख तुझ्या तेजामुळे
चंद्रमा ठरलीस तू
सगळेच उरले ठोकळे 

पूर आला नक्षत्रांचा
काळोख्या तारांगणी
थक्क झालो, दंग झालो
पाहिले तुज ज्या क्षणी || २ ||

                        श्वास अडला चार घटका
                        थांबला हृदयात ठोका
                        राहिले उघडेच डोळे
                        जणु विजेचा सौम्य झटका 

                        मी कसे शुद्धीत यावे ?
                        काढे ना चिमटा कुणी
                        थक्क झालो, दंग झालो
                        पाहिले तुज ज्या क्षणी || ३ ||

- अनामिक
(११-२२/०३/२०१९, १२/०५/२०१९)

04 मई 2019

ऐ चाँद.. तू ही है पसंद

कल था महूरत खास कुछ
लंबी अमावस बाद फिर
जो छुप गया था बादलों में
कल मिला था चाँद फिर

गप्पें किए फिर खूब उसने
फिर मजाक-मजाक में
उसने ही छेडी बात खुद
की "कौन है तुमको पसंद ?"

मैं मन ही मन में हस दिया
फिर कश्मकश में पड गया

अब चाँद को कैसे कहू ?
"ऐ चाँद.. तू ही है पसंद
दिल के, नजर के दायरों में
शायरी के अक्षरों में
बासुरी के सब सुरों में
सिर्फ तू ही है बुलंद"

पर क्या करू ? मजबूर था
होकर जुबाँ पर नाम उसका मैं बता पाया नही
क्या ही पता ? सच जानकर,
होकर खफा अंबर में वो खिलना न बंद कर दे कही

मैं इसलिए बस मुस्कुराया
और बोला, "है कोई.."
खुद जान न पाए,
चाँद इतना नासमझ भी तो नही

- अनामिक
(०३,०४/०५/२०१९)

31 मार्च 2019

तुझे हासणे

नितळ, निरामय, निखळ, निरागस
दिलखुलास, निर्भेळ, निखालस
धुंद, मुक्त, निर्मळ अन् गोंडस
लहानग्यागत तुझे हासणे

                              गडगडणाऱ्या नभासारखे
                              कोसळत्या धबधब्यासारखे
                              झुळझुळत्या निर्झरासारखे
                              उसळत्या कारंज्यासारखे
                              सळसळत्या वादळासारखे
                              खळखळत्या सागरासारखे
                              स्वच्छंदी पाखरासारखे

रुणझुणत्या पैंजणांसारखे
गुणगुणत्या कोकिळेसारखे
चिमणीच्या चिवचिवीसारखे
कर्णमधुर भैरवीसारखे
लाटांच्या संगितासारखे
रिमझिमणाऱ्या सरींसारखे
कृष्णाच्या बासरीसारखे

                              किती मधुर अन् किती रसाळ
                              काजूकतली, खिरीसारखे
                              बासुंदी अन् पुरीसारखे
                              मोतीचूर लाडवासारखे
                              आंब्याच्या गोडव्यासारखे
                              रसरसल्या पोळ्यातुन टपटप
                              ओघळणाऱ्या मधासारखे
                              जखमेवर औषधासारखे

कोमेजलेल्या कळीला पुन्हा
फुलण्याच्या प्रेरणेसारखे
मरगळलेल्या आयुष्याला
जणू नव्या चेतनेसारखे

                              असेच नेहमी चमकत राहो
                              बरसत राहो तुझे हासणे
                              पुनवेच्या चांदण्यासारखे
                              हिरव्यागार श्रावणासारखे

- अनामिक
(२१/०२/२०१९, ३०/०३/२०१९)

10 फ़रवरी 2019

ती

अल्लड, अवखळ अन् उत्श्रृंखल
निखळ, खोडकर, नटखट, चंचल

दिलखुलास, लहरी, स्वानंदी
बेधुंद, बेफिकिर, स्वच्छंदी
निडर, धीट, बिनधास्त, बेधडक
कधी विचारी, हळवी, भावुक

गोजिरवाणी, गोड, लाजरी
अन् लडिवाळ, लाघवी, हसरी
नाजुक, मोहक, मखमल, कोमल
दीप्त, प्रखर, तेजस्वी, उज्ज्वल

चैतन्याचा, उत्साहाचा
अन् ऊर्जेचा अखंड श्रावण

अनंत छटा व्यक्तिमत्वाच्या
असंख्य पैलू अस्तित्वाचे
पुरे न पडती विशेषणांचे रंग
तिचे करताना चित्रण

- अनामिक
(२४-३१/०१/२०१९, १०/०२/२०१९)

09 फ़रवरी 2019

मिठास

शक्कर के दानों सी तेरी छोटीसी, पर मीठी बातें
नाजुक होंठों पर मिश्री की डलियों जैसी मुस्कुराहटें
लब्जों से चाशनी छलकती, नजरों में शरबत की नदिया
गुलाबजामुन से गालों पर शहद सी शर्म-हया की छींटें

इतनी ज्यादा मिठास तेरी
जितनी भी पीकर जी भरकर भर लू इन नैनों के प्यालें
इस दिल को ना मिले राहतें

जितनी कर लू बातें तुझसे
जितनी जी लू सोहबत तेरी
जितनी पी लू खूबसूरती
और बढे ये अजब प्यास है
मिठास ही ये मर्ज है दिल का
इलाज भी ये मिठास है

- अनामिक
(१७,१८/०१/२०१९, ०९/०२/२०१९)

06 फ़रवरी 2019

चाबी

मैं लाख लगा लू पेहरें दिल पे, तालें डालू जुबान पे
मैं जजबातों के तीर रोक लू इन पलखों की कमान पे

पर..
तेरे कदमों की आहट मैं
तेरी नजरों की हरकत में
तेरी हसीं मुस्कुराहट में वो जादूई खूबी है
और तेरे पास वो दो बातों की मि​​ठास की चाबी है,

जिससे..
हर इक ताला खुल जाए
और हर इक पेहरा ढल जाए
हर पत्थर सख्त पिघल जाए
संभले जजबात फिसल जाए

मैं मुश्किल से परहेज करू तुझसे, पर तू आसानी से..
सब व्रत मेरे तुडवाती है तू अपनी इक शैतानी से

- अनामिक
(२७/११/२०१८, ​०६/०२/२०१९)

04 फ़रवरी 2019

सदाफुली

फुलपाखरासारखी चंचल 
झुळझुळ झऱ्यासारखी अवखळ 
इवल्या मुलासारखी अल्लड 
अन् कारंज्यागत उत्श्रृंखल

                            श्रावण-सरींसारखी लहरी 
                            हवेसारखी निखळ, खेळकर 
                            नदीसारखी स्वच्छंदी, अन् 
                            लाटांगत बेधुंद, बेफिकिर

चिऊसारखी अथक बोलकी 
मधासारखी गोड, लाजरी 
सदाफुलीसारखी सदैव 
टवटवीत, स्वानंदी, हसरी

                            गुलाबासारखी मनमोहक 
                            मोरपिसागत मखमल, कोमल 
                            विजेसारखी प्रखर, तळपती 
                            अन् तारकांसारखी तेजल

चैतन्याचा पाउस रिमझिम 
प्रसन्नतेचा पूर निरंतर 
उत्साहाची उदंड भरती 
अमर्याद ऊर्जेचा सागर

                            किती रंग उपमांचे भरले 
                            अपूर्ण तरिही वाटे चित्रण 
                            शक्य नसे शब्दांनी करणे 
                            तिच्या व्यक्तिमत्वाचे वर्णन 

- अनामिक 
(२४/०१/२०१९ - ०४/०२/२०१९) 

04 जनवरी 2019

आगे चला

वो जंग लगी सब बेडियाँ
मैं तोडकर आगे चला
बेदर्द फर्जी दोस्तियाँ
मैं छोडकर आगे चला

सब मतलबी चेहरों से मैं
मुह मोडकर आगे चला
नकली, फरेबी सब मुखौटें
फाडकर आगे चला

अंधा भरोसा आँख से
मैं झाडकर आगे चला
खोखले भरम के बुलबुलें
मैं फोडकर आगे चला

बेजान रिश्तों के सडे शव
गाडकर आगे चला
मक्कार धोखेबाज जग से
दौडकर आगे चला

- अनामिक
(०१/०५/२०१८ - ०४/०१/२०१९)

12 अक्तूबर 2018

उड चला इक ख्वाब

इक ख्वाब पलखों से फिसलकर उड चला.. 

इक ख्वाब पलखों से फिसलकर उड चला दूजे नगर 
इक ख्वाब आँखों से उछलकर चल पडा अपनी डगर 

इक ख्वाब दिल की बंदिशों को तोडकर है उड चला 
इक ख्वाब ठहरी ख्वाइशों को छोडकर है उड चला 

वो गुदगुदी था, या चुभन ? 
था सर्द ठंडक, या जलन ? 

सच था, भरम, या झूठ था ? 
तेजाब का वो घूँट था ? 

रिमझिम खुशी की बारिशें ? 
या दर्द का सैलाब था ? 

जैसा भी था.. नायाब था 
सबसे सलोना ख्वाब था 

- अनामिक 
(०५/०६/२०१८ - १२/१०/२०१८) 

09 मई 2018

याद बाकी है कही

जो ढह गया पुल, बांधने की ख्वाइशें बिलकुल नही 
बस इक पुराने जलजले की याद बाकी है कही 

सब जख्म कब के भर चुके.. सब दर्द फीके पड गए 
बस उनके गहरे दाग अर्सों बाद बाकी हैं कही 

कब का हजम भी कर लिया उस दौर का जालिम जहर 
कुछ नीम से कडवे पलों का स्वाद बाकी है कही 

मजबूत ख्वाबों का महल.. गिर भी गया, अब गम नही 
कमजोर, मलबे में दबी बुनियाद बाकी है कही 

ना है खुदा से कुछ गिला.. जो ना दिया, अच्छा किया 
बस अनसुनी, खारिज हुई फर्याद बाकी है कही 

- अनामिक 
(२६/१२/२०१७ - ०९/०५/२०१८) 

19 मार्च 2018

बेमौसम बारिश

ये तारों की कुछ साजिश है, 
या कायनात की ख्वाइश है ? 
कुछ तो कारण है, वरना क्यों 
बेमौसम छलकी बारिश है ? 

बिजली की झनकार छेडकर 
बूँदों में पैगाम भेजकर 
रूठी धरती को मनाने की 
आसमान की कोशिश है 

अपनी मिट्टी के इत्तर से 
सभी दिशाएँ महकाने की 
बेकरार उस आसमान की 
धरती से फर्माइश है 

धरती भी अब भूलकर गिलें 
क्षितिज पे रुके आसमान के 
मुस्कुराते लग जाए गले 
कुदरत की यही सिफारिश है 

- अनामिक 
(१९/०३/२०१८) 

08 मार्च 2018

छोड दू

तुम रूठ जाओ, मैं मनाऊ.. खेल ये चलता रहे 
रूठो न इतना भी, की मैं थककर मनाना छोड दू 

नजरें चुरा लो कुछ दफा.. कर लू नजरअंदाज भी 
पर यूँ न फेरो मुह, की मैं नजरें मिलाना छोड दू 

मैं कुछ कहू, कुछ पूछ लू.. सुनकर भी कर दो अनसुना 
इतनी भी चुप्पी मत रखो, मैं बात करना छोड दू 

पीछे चलो, आगे चलो.. धीमे चलो, भागे चलो 
पर यूँ न मोडो कदम, की मैं साथ चलना छोड दू 

- अनामिक 
(२०/०२/२०१८ - ०८/०३/२०१८)

03 मार्च 2018

ऐ चाँद पूनम के, बता..

तू दूर है, या पास है ? 
तू गैर है, या खास है ? 
तू जाम है, या प्यास है ? 
ऐ चाँद पूनम के, बता..
                               तू ख्वाब है, या आस है ? 
                               या दर्द का एहसास है ? 
                               तू सच है, या आभास है ? 
                               ऐ चाँद पूनम के, बता.. 

ये शबनमी तेरी किरन 
है छाँव शीतल, या जलन ? 
है नर्म रेशम, या चुभन ? 
ऐ चाँद पूनम के, बता.. 

                               होकर नजर के सामने 
                               तू बादलों के पार है 
                               क्यों दर्मियाँ दीवार है ? 
                               ऐ चाँद पूनम के, बता..

- अनामिक
(०१-०३/०३/२०१८) 

30 जनवरी 2018

शब्द आले, शब्द गेले

शब्द आले, शब्द गेले, शब्द बोलत राहिले 
शब्द पडले, शब्द उठले, शब्द डोलत राहिले 

शब्द मिटले, शब्द फुलले, शब्द बहरत राहिले 
शब्द झडले, शब्द रुजले, शब्द उमलत राहिले 

शब्द सुकले, शब्द भिजले, शब्द बरसत राहिले 
शब्द स्वप्नांच्या सरींचे वार झेलत राहिले 

शब्द खचले, शब्द विरले 
शब्द लढले, शब्द हरले 
शब्द बुडले, शब्द तरले, शब्द उसळत राहिले 
वेदनांची रत्नमाला शब्द माळत राहिले 

शब्द झुरले, शब्द रुसले 
शब्द रडले, शब्द हसले 
शब्द भुलले, शब्द फसले, शब्द भाळत राहिले 
शब्द दगडी देवतांवर व्यर्थ उधळत राहिले 

शब्द थकले, शब्द विटले 
शब्द सजले, शब्द नटले 
कालगंगेतून अविरत शब्द वाहत राहिले 
मार्ग सारे खुंटले, पण शब्द चालत राहिले 

- अनामिक 
(१२-३०/०१/२०१८) 

25 जनवरी 2018

काँच की दीवार

ये काँच की दीवार है मेरे-तुम्हारे दर्मियाँ 
यूँ तो लगे नाजुक, मगर फौलाद से कुछ कम नही 
इस को गिराने का खुदा की जादू में भी दम नही 

इस छोर का, उस पार का सब कुछ दिखाई दे, मगर.. 
हैं बंदिशें दोनो तरफ आवाज के हर रूप पर 
बातें, पुकारें, शोर, सुर, सिसकी, हसी, सरगम नही 

इक दौर था, जब दो पलों की गुफ्तगू ही थी खुशी 
अब तो महीनों की घनी खामोशी का भी गम नही 

अब सच कहू, तो काँच की दीवार ही ये है सही 
बंद खिडकियाँ खुलने की अब उम्मीद कम से कम नही 
शायद पुकारोगे कभी, गलती से ही.. ये भ्रम नही 
हाँ, वक्त से बढिया किसी भी जख्म पर मरहम नही 

- अनामिक 
(२३-२५/०१/२०१८) 

31 दिसंबर 2017

कुछ रह गया, कुछ ढह गया

कुछ गुम गया, कुछ बच गया
कुछ गिर गया, कुछ रह गया 
इस वक्त के सैलाब में 
क्या कुछ न जाने ढह गया 

                      कुछ कागजों की कश्तियाँ 
                      कुछ काँच की नक्काशियाँ 
                      इक सीपियों का ताजमहल 
                      इक रेत का पुल बह गया 

लिखता रहा, गाता रहा मैं 
लब्ज ना पहुँचे कही 
खामोश रहकर भी मगर 
सन्नाटा क्या कुछ कह गया 

                      बदमाशियों से बाज ना आयी 
                      सितमगर जिंदगी 
                      मैं भी तो कम जिद्दी नही 
                      सब मुस्कुराकर सह गया 

- अनामिक 
(२९-३१/१२/२०१७) 

22 दिसंबर 2017

तोहफा

सोच रहा हूँ, क्या दू तुमको ? तोहफा क्या लाजवाब दू ? 
झिलमिल झुमकें, छनछन पायल, या नाजुक सा गुलाब दू ? 

देने को तो खरीदकर दू मैं तो पूरी दुकान भी 
तोहफें रखने कम पड जाए तुमको अपना मकान भी 

शायर हूँ पर.. सोचता हूँ, लब्जों में रंगी स्याही दू 
तुम पर लिखी तमाम नज्मों से बढकर तोहफा क्या ही दू ? 

स्वीकार करो या ठुकराओ.. तुम करना जो भी लगे सही 
ये गीत मगर गूँजेंगे ही.. ये रसीद के मोहताज नही 

- अनामिक 
(२३/१२/२०१६ - २२/१२/२०१७)

21 दिसंबर 2017

ख्वाब का पुल

हर रात निंदिया की नदी पर 
ख्वाब का पुल बांधकर 
भरकर सितारें जेब में 
मिलने निकलता हूँ तुम्हे 

तुम रात का काजल लगाकर 
चाँद बालों में सजाकर 
ताज फूलों का पहनकर 
राह में नजरें बिछाकर 

मेरी प्रतीक्षा में नदी के 
पार रहती हो खडी 
दो नैन बेचैनी भरे 
सौ बार तकते हैं घडी 

छुपते हुए पुल लांघकर मैं चाँदनी की छाँव से 
पीछे तुम्हारे आ खडा रहता हूँ हलके पाँव से 
होले से हाथों से तुम्हारे नैन ढक देता हूँ मैं 
और सब सितारें जेब से सर पर छिडक देता हूँ मैं 

वो स्पर्श मेरा जानकर 
वो धडकनें पहचानकर 
नाजुक लबों पर चैन की भीनी हसी खिलती हुई 
तरसी निगाहों में सितारों की चमक घुलती हुई 
होकर खुशी में चूर गालों पर हया चढती हुई 
बेताब साँसों में सुरीली रागिनी छिडती हुई 

उस इक झलक के, उस हसी के, 
उस हया के वासते 
मैं इक नदी, इक पुल भला क्या 
आँधियाँ क्या, जलजला क्या 
लाख पुल भी बांधकर 
हर जलजले को लांघकर 
मैं रोज ही मिलने तुम्हे 
आऊ किसी भी रासते 

बस रोज यूँ ही राह तकना 
उस नदी के पार तुम 
बेसब्र पलखों में सजाकर 
इश्क का गुलजार तुम 

- अनामिक 
(०९/०४/२०१७ - २१/१२/२०१७) 

20 दिसंबर 2017

हादसा

हाँ, हो चुका था हादसा इक, जाने-अनजाने सही
पर जो हुआ, वैसा ही करने का इरादा था नही 

कुछ वक्त की बदमाशियाँ, कुछ चाल थी हालात की 
कुछ खेल था संजोग का, कुछ थी खता जजबात की 

मैं बस समय की उस नदी में नाव सा बहता गया 
बहाव के सब पत्थरों के घाव फिर सहता गया 

ना जख्म का गम, बस खुदा से है गिला इस बात का 
अपनी सफाई का मुझे मौका न इक भी दे सका 

पर आज भी वो हादसा खुद की नजर में माफ है 
दिल साफ था उस रोज भी, और आज भी दिल साफ है 

- अनामिक 
(१३,२०/१२/२०१७) 

07 दिसंबर 2017

नजरें

अल्हड नजरें, चंचल नजरें.. जजबातों से बोझल नजरें 
चुपके से दीदार पिया का करने हर पल बेकल नजरें 

इन नजरों से मिल जाने बेचैन भटकने वाली नजरें 
भटक-भटक इन नजरों के ही पास अटकने वाली नजरें 

टकराए जब, शरमाकर खुद को ही झुकाने वाली नजरें 
नर्म अधखुली पलखों से फिर धीमे मुस्काने वाली नजरें 

जान-बूझकर टकराकर भी, सोच-समझकर भिडकर भी 
गलती से ही टकराने का आभास जताने वाली नजरें 
लाख छुपाकर भी सब कुछ ही साफ बताने वाली नजरें 

इन नैनों के रस्ते दिल के पार उतरने वाली नजरें 
कटार जैसी धार से अपनी घायल करने वाली नजरें 

कभी रूठकर, कभी सताने खामखा मुडने वाली नजरें 
ज्यादा दूरी सही न जाकर फिर से जुडने वाली नजरें 

दो नैनों से सौ तरहा के रूप दिखानेवाली नजरें 
लब्जों बिन मीठी बोली से प्रीत सिखाने वाली नजरें 

- अनामिक 
(२५/११/२०१७ - ०७/१२/२०१७)

04 दिसंबर 2017

मरम्मत

कब बिगडी, और कैसे बिगडी कुछ चीजें, ये अहम नही 
अहम यही है, उनकी कब किस तरह मरम्मत की जाए 

इसकी गलती, उसकी गलती.. किसकी गलती ? फिजूल है 
कबूल करके गलती सुधारने की हिम्मत की जाए 

कई गुत्थियाँ बस बातों से सुलझाई जा सकती है 
जुबाँ की कैंची पे काबू पाने की जहमत की जाए 

इक नन्हा सा अंकुर भी कल महावृक्ष बन सकता है 
मगर लगन से हर आँधी से उसकी हिफाजत की जाए 

अपनों के हुनर, गुणों की तो सभी सराहना करते हैं 
पर उनके सब दोष, खामियों से भी मोहब्बत की जाए 

- अनामिक 
(०१,०२,०४/१२/२०१७) 

गिलें

गलतफहमियों के अंबर में सूझ-बूझ के बादल आए 
एक कदम था अंतर, करने पार जहाँ हम चल आए 

वैसे तो कुछ वजह नही थी बेमतलब की अनबन की 
करने गए सुलह, तो सदी पुराने गिलें निकल आए 

आ न रहा था समझ, भला कैसे शिकस्त दे दुश्मन को 
थूक दिया गुस्सा, तो दिमाग में दोस्ती के हल आए 

निकले थे हम दुनिया को अपनी नसीहतों से रंगने 
दिखा आइना चलते चलते, खुद को ही फिर बदल आए 

- अनामिक 
(०२-०४/१२/२०१७) 

30 नवंबर 2017

सौदा

क्यों बिन फायदे का रिश्ता जोडे ?
चल इक सौदा करते हैं 
जो पास खजाना है दोनों के, 
आधा-आधा करते हैं 

                              तू धूप सुनहरी ले आना 
                              मैं बरसातें ले आऊंगा 
                              कुछ नजरानों के बदले में 
                              कुछ सौगातें ले आऊंगा 

मैं तेरी पतझड ले लूंगा 
तू मेरी बहारें रख लेना 
मैं तेरे अंधेरें पी लूंगा 
तू मेरे सितारें रख लेना 

                              हर दर्द उठा लूंगा तेरा 
                              मेरी मुस्कानें रख लेना 
                              गा लूंगा तेरी चुप्पी भी 
                              तू मेरे तरानें रख लेना 

मैं तेरी आँधियाँ झेलूंगा 
तू मेरी हवाएँ रख लेना 
मैं तेरी बलाएँ ले लूंगा 
तू मेरी दुआएँ रख लेना 

                              तनहाई अपनी दे देना 
                              पर मेरी सोहबत रख लेना 
                              नफरत भी देना, फिकर नही 
                              पर मेरी मोहब्बत रख लेना 

तू जो बोले दिल, दे देना 
तू जो बोले दिल, रख लेना 
मंजूर मुझे है सौदा, बस.. 
दिल के बदले दिल रख लेना 

- अनामिक 
(२५-३०/११/२०१७) 

29 नवंबर 2017

कुछ करतब हो तो बतलाओ

ये बात समझ के बाहर है 
क्या हुनर भला शानदार है ? 
खासियत कौनसी है तुम में ? 
जो गुरूर सर पर सवार है 

मैं जी भरकर तारीफ करू 
मैं सर-आँखों पर भी रख लू 
कुछ कला, कसब तो दिखलाओ 
कुछ करतब हो तो बतलाओ 

तुम हुस्नपरी हो, तो मानू 
तुम जादूगरी हो, तो मानू 
इक साधारण सी सूरत लेकर 
चार किलो श्रुंगार चढाकर 
दो कौडी की घमंड का 
कुछ मतलब हो तो बतलाओ 

इन्सान अगर हो, इन्सानों की 
तरह जमीं पर चला करो 
हर वक्त गगन में रहने वाले, 
तुम रब हो तो बतलाओ 

जो मान उचित है, बेशक दू 
पर काबिलियत के नुसार ही 
बस लडकी हो तो भाव चाहिए 
ये दलील मंजूर नही 

मैं दोस्त बनूंगा खुद होकर 
गप्पें कर लूंगा जी भरकर 
जब बेवजूद ये अकड, हेकडी 
गायब हो तो बतलाओ 

कुछ करतब हो तो बतलाओ 

- अनामिक 
(२८,२९/११/२०१७)

23 नवंबर 2017

चुन लिया, बस चुन लिया

यूँ तो न रेशम और मखमल की कमी बाजार में
इक ख्वाब धागों से रुई के बुन लिया, बस बुन लिया 

यूँ तो न अंबर में पडा है चाँद-तारों का अकाल 
पर इक दफा, ग्रह ही सही, जो चुन लिया, बस चुन लिया 

वैसे न मानी बात औरों की, न खुद की भी कभी 
इक बार पर जो हुक्म दिल का सुन लिया, बस सुन लिया 

हर गैर से रिश्ता बनाने की मेरी फितरत नही 
इक बार अपनों में किसी को गिन लिया, बस गिन लिया 

- अनामिक 
(०६/०६/२०१७, २३/११/२०१७) 

07 नवंबर 2017

रूबरू

हैं वक्त की बदमाशियाँ,
फिर लौट आयी वो घडी
जिस मोड से मैं थी मुडी,
उस मोड पे फिर हूँ खडी
रंगीन ख्वाबों के सफर में अतीत फिर है रूबरू
इक हादसे में खो दिया, वो मीत फिर है रूबरू          ॥ मुखडा ॥ 

बीते समय की पटरियों पे ट्रेन यादों की चले
दो बोगियाँ होकर जुदा भी ना मिली थी मंजिलें
कितनी भी खोलू खिडकियाँ,
गुजरा नजारा ना दिखे
जो रह गया पीछे कही
स्टेशन दुबारा ना दिखे
खिलकर लबों पे चुप हुआ, वो गीत फिर है रूबरू
इक हादसे में खो दिया, वो मीत फिर है रूबरू          ॥ अंतरा-१ ॥ 

वो गैर संग खुशहाल है, ये बात अब क्यों खल रही ?
खुद ही बुझाई थी कभी, वो आग फिर क्यों जल रही ?
कुछ गलतियाँ, नादानियाँ,
कुछ जिद-घमंड, शिकवें-गिलें
जड से जला देती अगर
होते न पैदा फासलें
वो हार मेरी, गैर की बन जीत फिर है रूबरू 
इक हादसे में खो दिया, वो मीत फिर है रूबरू          ॥ अंतरा-२ ॥ 

- अनामिक
(०१-०७/११/२०१७)

31 अक्तूबर 2017

चोट

गुमसुम पडी थी मुद्दतों से, शाख दिल की हिल गयी 
जो लाख टाली थी नजर, वो फिर नजर से मिल गयी 

सौ कोशिशों, सौ मरहमों से जख्म था भरने लगा 
इक जिक्र क्या उनका हुआ, वो चोट फिर से छिल गयी 

जकडे रखी थी नैन में इक ख्वाब की तितली हसीं 
भवरा भरम का क्या दिखा, पर फडफडाकर खुल गयी 

बेताब थे सब लोग सुनने, जब तलक लब थे सिले 
दुखडा जरा क्या गा दिया, उठकर भरी महफिल गयी 

वो इक सुहाना हादसा.. घटकर सदी भी हो चुकी 
पर आज भी उस सांझ की वो याद फिर से छल गयी 

- अनामिक 
(०६-३१/१०/२०१७)

29 अक्तूबर 2017

काळोखाच्या किती छटा

रात्र नेसुनी जशी उजळते शुभ्र चंद्रकोर अंबरी 
तसा शोभतो काळोखाचा रंग भरजरी तुझ्यावरी 

केसांमधल्या काळ्या लाटा 
डोळ्यांचे काळोखे डोह 
पापण्यांतली काळी नक्षी 
कसा आवरू त्यांचा मोह 

त्यात तुझा मखमाली काळाशार राजबिंडा पेहराव 
वाढवतो नजरेची तृष्णा, मुग्ध मनाचा घेतो ठाव 

त्यावर इवल्या चमचम टिकल्या, 
नक्षत्रांचा जणू बहर 
किती पाहिले वेष तुझे, 
ना एकालाही याची सर 

पंखांशिवाय, छडीविनाही भासतेस तू यात परी 
काळोखाच्या किती छटा त्या खुलून दिसती तुझ्यावरी 

- अनामिक 
(२४-२९/१०/२०१७) 

30 सितंबर 2017

कोडी

चंद्र होता रात्रवेडा, रात्र होती सूर्यवेडी
सूर्य होता सांजवेडा, सांज होती चंद्रवेडी 
ओढ कोणाला कुणाची, आणि तिटकारा कुणाचा 
अंतरिक्षाला स्वतःलाही न सुटली गूढ कोडी               ॥ धृ ॥ 

वेध धूसर धूमकेतूचे खुळ्या पृथ्वीस होते 
कैक शतकांची प्रतीक्षा, मीलनाचे स्वप्न खोटे 
एकदा फिरकून तो काढून गेला फक्त खोडी               ॥ १ ॥ 

मोह धरणीला उन्हाचा, चांदण्याचीही तृषा 
कैफ थंडीचा गुलाबी, पावसाचीही नशा 
भोग इतके चाखले की, राहिली न कशात गोडी           ॥ २ ॥ 

आजन्म सूर्याभोवती पिंगा ग्रहांनी घातला 
पण सूर्य अंधारात अज्ञातास धुंडत राहिला 
जिथल्या तिथे सगळेच, पण जमली कुणाचीही न जोडी  ॥ ३ ॥ 

- अनामिक 
(१६-३०/०९/२०१७)

11 सितंबर 2017

तालाब

हाँ, दोष है तालाब का, जो खुद ही मचला था कभी 
अब तक न स्थिर जो हो सका, आए गए मौसम सभी 

वो खुद-ब-खुद ही शांत हो जाता, न होता, क्या पता ? 
पर चंद कंकड फेकने की तो किसी की थी खता 

साबित न कुछ करना, न अब देनी दलीलें अनकही 
जिसने शरारत की, उसे एहसास है, काफी यही 

मालूम है तालाब को अपनी हदें, ना हो फिकर 
उडने न देगा छींट भी तट पर खडे नादान पर 

- अनामिक 
(०७-११/०९/२०१७) 

04 सितंबर 2017

ये रात है.. ये राह है..

ये रात है.. ये राह है.. ये साथ है.. ये चाह है.. 
इस चाह की इस राह पर हम तुम सनम गुमराह हैं 

ये बादलों की बोतलों में बिजलियों के जाम हैं 
पी ले इन्हे, ये दिल बहकने का रसीला माह है 

ना है जमाने की फिकर, ना हैं समय की बंदिशें 
कसकर मुझे लिपटी हुई नाजुक तुम्हारी बाह है 

हम बेसबब चलते रहे, मंजिल मिले, ना भी मिले 
खो भी गए इक-दूसरे में, क्या हमें परवाह है ? 

थककर कभी रुक भी गए, भरना मुझे आगोश में 
उस मखमली आगोश सी दूजी न कोई पनाह है 

- अनामिक 
(०६/०८/२०१७ - ०४/०९/२०१७) 

31 अगस्त 2017

अखेरचे हे गीत सखे

हे गीत कदाचित अखेरचे
यानंतर तुझे न शब्द सखे 
जे द्वार तुझ्यास्तव सताड उघडे 
करेन म्हणतो बंद सखे 

                       उतरेल जरी पानावर शाई 
                       तुझे न येइल नाव सखे 
                       चालेल अक्षरांचा प्रवास, पण 
                       तुझे न येइल गाव सखे 

उठतील कल्पनांच्या लाटा 
पण नसेल तुझा तरंग सखे 
फिरतील कुंचले स्वप्नांचे 
नसतील तुझे पण रंग सखे 

                       डुंबेन विचारांच्या डोही 
                       पण तुझे नसेल प्रतिबिंब सखे 
                       झरतील सरीही कवितांच्या 
                       नसतील तुझे पण थेंब सखे 

मोगरा सुरांचा दरवळेल 
पण नसेल तुझा सुगंध सखे 
घुमतील बासरीचे स्वरही 
पण नसेल तुझा निनाद सखे 

                       ते स्वप्न भरजरी होते, पण 
                       वास्तवास नव्हता वाव सखे 
                       थांबवतो अता खुंटलेला हा 
                       बुद्धिबळाचा डाव सखे 

- अनामिक 
(२५-३१/०८/२०१७) 

27 अगस्त 2017

सखे

मी करेन म्हणतो कैद तुला, शब्दांचे घेउन रंग सखे 
पण नजर तुला भिडताच तुझ्या रंगातच होतो गुंग सखे 
तू समोर असता, सांग सखे, मी भान स्वतःचे कसे जपू ? 
आरस्पानी अस्तित्व तुझे मी कवितेमधुनी कसे टिपू ?   ॥ धृ ॥ 

ही वीज तुझ्या डोळ्यांमधली 
ही जुई तुझ्या ओठांवरली 
ही सांजेची लाली गाली 
हा सूर्याचा ठिपका भाळी 
हा मोरपिसासम स्पर्श फुलवतो मनी सहस्त्र तरंग सखे 
मी भान स्वतःचे कसे जपू, तू समोर असता ? सांग सखे ॥ १ ॥ 

हा वादळवारा केसांचा 
हा धुंद मोगरा श्वासांचा 
हा देह चिमुकला चिमणीचा 
पण डौल जणू फुलराणीचा 
मी काय लिहू, अन्‌ काय नको ? उपमांची मोठी रांग सखे 
मी भान स्वतःचे कसे जपू, तू समोर असता ? सांग सखे ॥ २ ॥ 

हे गूढ इशारे नजरांचे 
हे गहन भाव चेहऱ्यावरले 
हे गुपित मंद स्मितहास्याचे 
हे लक्ष शब्द मौनामधले 
मी खोल उतरतो तुझ्या अंतरी, तरी न लागे थांग सखे 
मी भान स्वतःचे कसे जपू, तू समोर असता ? सांग सखे ॥ ३ ॥ 

- अनामिक 
(१५-२७/०८/२०१७) 

23 अगस्त 2017

दिल फिसलने की घडी

मदहोश बादल, धुत समा, बेताब बूँदों की झडी 
ऐसे समय तुम रूबरू बारिश लपेटे हो खडी 
तुम ओंस में भीगी हुई जैसे कमल की पंखुडी 
रोकू, संभालू, जो करू.. है दिल फिसलने की घडी 

भीगी लटों से हैं टपकती मोतियों की ये लडी 
ये ठंड से कांपता बदन, पर है नजर में फुलझडी 
पलखें झपकती ही नही, तुम पर निगाहें जो जडी 
रोकू, संभालू, जो करू.. है दिल फिसलने की घडी 

गुस्ताखियाँ गर हो गयी, तो दोष ये किसका कहे ? 
मेरा? तुम्हारा? इश्क? या बदमाश बारिश का कहे ? 
ऐसे न उतरेगी, मुझे जो रूप की मदिरा चढी 
रोकू, संभालू, जो करू.. है दिल फिसलने की घडी 

- अनामिक 
(२७/०७/२०१७, २१-२३/०८/२०१८)

13 अगस्त 2017

कभी ना हो खतम

ये दिन खतम ना हो कभी, ये रात भी ना हो खतम
ये बेसमय चलती हमारी बात भी ना हो खतम 

ये तितलियों के काफिलें, ये जुगनुओं की महफिलें
ये चाँदनी की मदभरी बरसात भी ना हो खतम 

ये रंग हया का शरबती, लब पे हसी की चाशनी
दिल से छलकते शबनमी जजबात भी ना हो खतम 

तरकीब कुछ हम खोज ले, सुइयाँ घडी की रोक ले
पर ख्वाब सी ये जादुई मुलाकात भी ना हो खतम 

ये दो कदम का रासता, ये सौ जनम का वायदा
ये उम्रभर के साथ की शुरुआत भी ना हो खतम 

- अनामिक 
(०६-१३/०८/२०१७) 

23 जुलाई 2017

आर या पार

बहोत हो चुकी लुक्का-छुप्पी, कुछ तो तय इस बार करो 
करना है तो प्यार करो.. वरना सीधा वार करो 

मन के फिजूल खेल न खेलो, नये पैंतरे तो सोचो 
घिसीपिटी सब तरकीबों से दिल का फिर न शिकार करो 

टुकडे टुकडे हो जाए दिल, ऐसा तेज प्रहार करो 
मिर्च रगड दो सब जख्मों पर, दर्दों से बेजार करो 

या फिर छू लो होले से दिल, नर्म हाथ से दस्तक दो 
प्रीत की रिमझिम बारिश से दिल की जमीन गुलजार करो 

चूहे-बिल्ली वाले खेल में मुझे न अब दिलचस्पी है 
मान से दिल में पनाह दू, पर शान से चौखट पार करो 

प्यार करो या वार करो.. पर जो है, आर या पार करो 

- अनामिक 
(१०-२३/०७/२०१७) 

16 जुलाई 2017

बारिशें

ये बादलों की सिलवटें
सागर-लहर की करवटें
हैं बिजलियों की आहटें
ये तेरी लहराती लटें

                            ये मौसमों की साजिशें
                            ये मोतियों की बारिशें
                            भीगा जहाँ, हम दो यहा
                            क्या और हो फर्माइशें ? 

इन उंगलियों को छेडता
ये हाथ तेरा रेशमी
जैसे क्षितिज पे मिल रही
बेताब अंबर से जमीं 

                            कितना नशा इस रैन में
                            और जाम तेरे नैन में
                            प्याला जिगर का भर लिया
                            फिर भी बडा बेचैन मैं 

तेरी मोहब्बत की झडी
यूँ ही बरसती जो रही
मेरे संभलने की भला
फिर कोई गुंजाइश नही 

- अनामिक
(१५/०७/२०१७) 

13 जुलाई 2017

जवाब

करने को तो जंग भी कर लू, ईट का जवाब पत्थर से दू
सब तानों का, अपमानों का हिसाब तीखे अक्षर से दू
मगर क्या करू ? शायर जो हूँ, शायर का ये धरम नही
काँटें भी दे मारे कोई, गुलाब महके इत्तर से दू

कलम हाथ में है नाजुक सी, नोकीली तलवार नही
इश्क छलकता है इससे, इसमें रंजिश की धार नही
हर किस्सा इक नज्म बनेगी, जंग कर लो, या समझौता
दिल जीतेगी दुश्मन का भी, इसकी किस्मत हार नही

- अनामिक
(२६/०४/२०१६, १२,१३/०७/२०१७)

08 जुलाई 2017

ज़िंदगी को ब्रेक नही है

ज़िंदगी को ब्रेक नही है 
दौडती ही जा रही है 
रुकने का ये नाम ना ले 
फुरसत से ये काम ना ले 
ज़िंदगी.. 

महकती ज़िंदगी 
चहकती ज़िंदगी 
बहकती ज़िंदगी 
ज़िंदगी ज़िंदगी..            ॥ मुखडा ॥ 

ख्वाइशों की कार लेकर 
मुश्किलों के पार लेकर 
ये न माने स्पीडब्रेकर 
बस दबाए ऐक्सिलिरेटर 
ज़िंदगी ज़िंदगी..            ॥ अंतरा-१ ॥ 

हर घडी अनोखा सफर है 
टेढी-मेढी हर डगर है 
जोश के संग होश हो तो 
ऐक्सिडंट की क्या फिकर है 
ज़िंदगी ज़िंदगी..            ॥ अंतरा-२ ॥ 

- अनामिक 
(२४/१२/२०१५ - ०८/०७/२०१७)

01 मई 2017

राधिका

कृष्ण छेडे बासरी 
आर्त यमुनेच्या तिरी 
राधिका येई न अजुनी 
गोपिका जमल्या तरी 

"का असा रुसवा गडे ?" 
प्रश्न कृष्णाला पडे 
साद व्याकुळ बासरीची 
उंच जाई अंबरी                                   ॥ धृ ॥ 

बासरीचे सूर भिरभिरती खुळे वाऱ्यासवे 
राधिकेचा ठाव घेण्या त्यास करती आर्जवे 
सांगती, "संदेश आतुर दे तिच्या जाउन घरी" 
कृष्ण छेडे बासरी                                 ॥ १ ॥ 

राग लटका दोन घटका, पण चिरंतर प्रीत आहे 
भाबड्या ओठांत कृष्णाचाच जप अन् गीत आहे 
वास कृष्णाचाच आहे राधिकेच्या अंतरी 
कृष्ण छेडे बासरी                                 ॥ २ ॥ 

- अनामिक
(२९/०४/२०१७, ०१/०५/२०१७)

28 अप्रैल 2017

पुष्कळ झाली फुले अबोली

पुष्कळ झाली फुले अबोली, गुलाबास चल देऊ संधी
संवादाचा फोडू पाझर, अन् मौनावर घालू बंदी        ॥ धृ ॥ 

नको नदी, अन् नकोच सागर.. स्वस्थ बसू इथल्या बाकावर 
झटकुन टाकू रुसवा-फुगवा, राग साचलेला नाकावर 
पुसून टाकू गतकाळाच्या समज-गैरसमजांच्या नोंदी ॥ १ ॥ 

गरम चहाने सुरू करूया थंडावलेल्या अपुल्या गप्पा 
घोटागणिक चहाच्या उघडू अलगद बंद मनाचा कप्पा 
इवलासा संवाद आजचा नव्या उद्याची ठरेल नांदी   ॥ २ ॥ 

गंधासोबत ऊब चहाची हळू भिनू दे मनी खोलवर 
विसरुन जाऊ कटुत्व सारे, जशी विरघळे चहात साखर 
तुझ्या गोड स्मितहास्याने वाटेल चहाही जणु बासुंदी ॥ ३ ॥ 

- अनामिक 
(२५-२८/०४/२०१७) 

20 अप्रैल 2017

डगर

सांझ शीतल, छाँव की चुनरी लपेटे है डगर 
चल पडे हैं बेसबब हम दो, जहाँ से बेखबर 

बुलंद पेडों का सजा है शामियाना स्वागत करने 
डालियों की खिडकियों से छू रही हैं नर्म किरनें 

रासतेभर सुर्ख पत्तों का बिछा कालीन है 
सावली परछाइयाँ भी दिख रही रंगीन हैं 

तितलियों के भेस में कुछ ख्वाब नाजुक उड रहे हैं 
सुर मधुर चंचल पवन की बांसुरी से छिड रहे हैं 

हाथ थामा है तुम्हारा, यूँ लगे रेशम छुआ है 
तेज पहिया वक्त का तुम संग लगे मद्धम हुआ है 

खत्म भी हो, या न हो अब ये डगर, ना है फिकर 
यूँ ही रहो तुम हमकदम, चलते रहेंगे उम्रभर 

- अनामिक 
(१०/०१/२०१७ - २०/०४/२०१७) 

13 अप्रैल 2017

मोल

हर शहर की ही तरह इस शहर से भी खामखा
एक तोहफा ले लिया है फिर तुम्हारे नाम का

ये जानकर भी की तुम्हे इसकी कदर तो है नही
पर क्या करू ? आदत कहो, खुद की तसल्ली ही सही

संदूक में ही बंद रखू, तुम तक न पहुँचाऊ अभी
घर-वापसी की तो न नौबत आएगी उसपर कभी

छोड भी दो मेरे, तोहफे के मगर जजबात हैं
उनका समझना मोल ना बस की तुम्हारे बात है

- अनामिक
(११-१३/०४/२०१७)

03 अप्रैल 2017

बस एक कदम

जल कितना भी हो अंबर में, बिन बादल कैसे बारिश हो ?
मैं लाख जतन भी कर लू, पर.. तुमसे भी तो कुछ कोशिश हो 

तुम एक कदम बस चल आओ, मैं तै सैंकडों मकाम करू 
तुम एक घडी दो फुरसत की, दिन-रैन तुम्हारे नाम करू 

तुम एक संदेसा भेजो बस, मैं बाढ चिठ्ठियों की लाऊ 
तुम एक पुकार लगाओ बस, मैं पार जलजलें कर आऊ 

तुम एक लब्ज ही कह दो बस, मैं नज्मों की बरसात करू 
तुम एक दफा बस मुस्काओ, मैं खुद होकर शुरुआत करू 

पर कम से कम वो एक कदम अब तुम्हे ही उठाना होगा 
मैं खोलूंगा दर झटके में, पर तुम्हे खटखटाना होगा 

मैं मीलों चल आया हूँ अब तक, थमना अभी जरूरी है 
पग में जमीर की बेडी है, जिसकी न मुझे मंजूरी है 

- अनामिक 
(२८/०३/२०१७ - ०३/०४/२०१७) 

27 मार्च 2017

पहचान

मैं चाँद झिलमिल, तुम छलकती चाँदनी 
मैं मेघ रिमझिम, तुम चमकती दामिनी 
मैं गीत दिलकश, तुम सुरीली रागिनी 
मैं दीप जगमग, तुम सुनहरी रोशनी 

अधूरी सी तुम्हारे जिक्र बिन पहचान है मेरी 
तुम्हारी ही कहानी में ढली दास्तान है मेरी  ॥ धृ ॥ 

बेताब साहिल मैं, लहर सी चुलबुली हो तुम 
मैं बावरा जुगनू, तितली मनचली हो तुम 
उम्मीद हो तुम, मैं तुम्हारा हौसला 
पंछी निडर तुम, मखमली मैं घोंसला 

तुम्हारे नर्म पंखों से बुलंद उडान है मेरी 
अधूरी सी तुम्हारे जिक्र बिन पहचान है मेरी ॥ १ ॥ 

तकदीर में मेरी लिखी हो तुम लकीरों सी 
मेरी मुसाफिर कश्तियों को तुम जजीरों सी 
तुम हो सियाही कल्पना की, मैं कलम 
इक-दूसरे संग ही मुकम्मल है जनम 

तुम्हारी ही खुशी के संग जुडी मुस्कान है मेरी 
अधूरी सी तुम्हारे जिक्र बिन पहचान है मेरी ॥ २ ॥ 

- अनामिक 
(०९/०८/२०१५ - २७/०३/२०१७) 

21 मार्च 2017

आओ अब कुछ बात करे ?

चुप्पी-चुप्पी खेल-खेलकर अगर भर गया होगा जी तो
आओ अब कुछ बात करे ?
अजनबियों के जैसे रहकर अगर तसल्ली मिल गयी हो तो
फिर से इक शुरुआत करे ?         ॥ धृ ॥

कुछ शिकवें मैं रखू जेब में
कुछ शिकायतें तुम दफना दो
कुछ कसूर हम माफ करे
        मुस्कुराहटों की मखमल से
        चेहरों से नाराजगी भरी
        धूल झटककर साफ करे
अंजाने में खडी हुई इन खामोशी की दीवारों पर
लब्जों का आघात करे ?
आओ अब कुछ बात करे ?         ॥ १ ॥

फाड फेंक दे बिगडे किस्सें
गलतफहमियों के सब पन्नें
अतीत की उस किताब से
        अनबन के नुकसान-फायदें
        कडवाहट की फिजूलखर्ची
        चलो मिटा दे हिसाब से
रंजिश की रूखी धरती पर अपनेपन की चंद बूँदों की
हलकी सी बरसात करे ?
आओ अब कुछ बात करे ?         ॥ २ ॥

- अनामिक
(२०/०२/२०१७ - २१/०३/२०१७)

18 मार्च 2017

आज भी

धूल रिश्तों पे जमी जो, मैं हटा पाता नही 
काँच सी बिखरी पडी यादें जुटा पाता नही 

फिक्र तो है आज भी, जितनी हुआ करती थी कल 
फर्क है बस, पहले जैसे अब जता पाता नही 

आज भी सुनने सुनाने बाकी हैं बातें कई 
पूछ पर पाता नही कुछ, कुछ बता पाता नही 

फासलें ये दो जहाँ के, दो कदम ही तो नही ? 
बढ न जाए और, इस डर से घटा पाता नही 

बंद है दर.. दस्तकों से खुल भी जाए, क्या पता ? 
ना खुला तो ? सोचकर दर खटखटा पाता नही 

- अनामिक 
(१८/०३/२०१७)

07 फ़रवरी 2017

पुन्हा मी वाचले सारे

पुन्हा मी वाचले सारे तुझ्या डोळ्यात दडलेले
पुन्हा मी ऐकले गाणे तुझ्या ओठात अडलेले     ॥ धृ ॥

मला बघताच हास्याची कळी हलकेच फुलणारी
जरा नजरानजर होता खळी गालात खुलणारी
पुन्हा टिपले मी ​चेहऱ्यावर गुलाबी रंग चढलेले
पुन्हा मी वाचले सारे..                           ॥ १ ॥

भिडे या अंतरी जर सूर त्या हळुवार स्पंदांचा
कळे जर अर्थ मौनाचा, कशाला भार शब्दांचा ?
खुणावे पापण्यांना द्वार स्वप्नांचे उघडलेले
पुन्हा मी वाचले सारे..                           ॥ २ ॥

- अनामिक
(०६/०१/२०१७ - ०७/०२/२०१७)

15 जनवरी 2017

संक्रांत

घुसमट सारी आज संपवू, किती रहावे शांत अता ? 
मिटवूया चल अपुल्यातल्या अबोल्याची संक्रांत अता ॥ धृ ॥ 

गुळाएवढा गोड नको, पण 
तिळाएवढा शब्द तरी 
नकोत गप्पा दिलखुलास, पण 
तुटकासा संवाद तरी 
पुष्कळ झाले रुसवे-फुगवे, नको बघूया अंत अता     ॥ १ ॥ 

पतंग माझ्या खुळ्या मनाचा 
तुझ्याच गगनी भिरभिरतो 
मांजा तुटला तरी वाट हा 
तुझ्या अंगणाची धरतो 
पुन्हा जोडुनी तुटके धागे करू नवी सुरुवात अता     ॥ २ ॥ 

- अनामिक 
(१४,१५/०१/२०१७)

13 जनवरी 2017

राही

चले तेज इस कदर जिंदगी, थमने की न इजाजत है 
बिता सकू इक मकाम ज्यादा समय, न इतनी फुरसत है 

नयी मंजिलें, नये नजारों की नजरों को दावत है 
चलू अकेला, बने काफिला.. जो भी आए, स्वागत है 

जिसको जुडना है, जुड जाए.. जिसको मुडना है, मुड जाए 
मैं तो अपनी राह चलूंगा, कदम जिस दिशा बढ जाए 

हाँ, रुक जाता हूँ उसकी खातिर, जिसे हमसफर बना सकू 
इक बार रुकू, दो बार.. मगर नामुमकिन है सौ बार रुकू 

- अनामिक 
(२९/१२/२०१६ - १३/०१/२०१७)

06 जनवरी 2017

सौगात जाया हो गयी

उस सांझ छेडी अनकही वो बात जाया हो गयी 
मन में सजी ख्वाबों की वो बारात जाया हो गयी 

वो साफ दिल से पेश की सौगात जाया हो गयी 
उसको सजाने में जगी वो रात जाया हो गयी 

वो बंद मुठ्ठी में छुपी कायनात जाया हो गयी 
दिल से लिखी दास्तान की शुरुवात जाया हो गयी 

वो कोशिशें, शिद्दत, जतन, जजबात जाया हो गये 
उस रात आँखों से गिरी बरसात जाया हो गयी 

- अनामिक 
(०४-०६/०१/२०१७) 

05 जनवरी 2017

बचपना

यूँ सूझा है आज बचपना, दर्या किनारे आया हूँ
बचपन के सब खेल सलोने यादों के संग लाया हूँ

देखो मेरा रेत का महल, सजा रही हैं शंख-सीपियाँ
लहरों की गोदी में तैर रही है वो कागज की नैया

वहा हवा संग गपशप करते उंगली से बांधे गुब्बारें
कैद बुलबुलों में साबुन के उडे जा रहे सपनें न्यारे

वहा गगन में मेघों के संग लडा रही है पेंच पतंग
नाम लिखे हैं साहिल पे जो, चूम रही है शोख तरंग

बचपन की उन यादों को बचपन में ही क्यों कैद रखे ?
क्यों न बडे होकर भी उनका नये सिरे से स्वाद चखे ?

- अनामिक
(१०/१२/२०१६ - ०५/०१/२०१७)

04 जनवरी 2017

कधीतरी वाटेलच की

हास्याचे उसने कारंजे कधीतरी आटेलच की
धीर संयमाचा मुखवटा कधीतरी फाटेलच की

गोष्ट संपली अर्ध्यातच, समजून अचानक मिटलेले
पुस्तक ते उघडून पहावे, कधीतरी वाटेलच की

किती नद्या अडवून ठेवल्या डोळ्यांच्या धरणांनी, पण
तळे पापण्यांच्या काठावर कधीतरी साठेलच की

किती पळावे सशासारखे शर्यतीत नवस्वप्नांच्या
आठवणींचे हळवे कासव कधीतरी गाठेलच की

सहज मिसळतो, रमतो हल्ली अनोळख्यांच्याही गर्दीत
घोळक्यातही त्या एकाकी कधीतरी वाटेलच की

पुन्हा नव्याने खुल्या गळ्याने जीवनगाणे गाइनही
चुकून येता सूर जुने ओठात कंठ दाटेलच की

- अनामिक
(०२-०४/०१/२०१७)

31 दिसंबर 2016

ऐ गुजरते साल

ऐ गुजरते साल, तुमने बिन कहे क्या कुछ दिया 
लब्ज भी कम पड रहे करने तुम्हारा शुक्रिया 

कुछ पुराने दोस्त छूटे, कुछ नये साथी मिले 
कुछ सुहाने ख्वाब रूठे, कुछ हसीं सपनें खिले 

बेजान कविता, शायरी को मिल गयी संजीवनी 
दिलकश धुनें खामोश मन को फिर लगी हैं सूझनी 

घूमने के शौक ने भी मंजिलें ढूँढी नयी 
और भीतर के मुसाफिर ने मकाम पाए कई 

हाँ ठीक है, जाते हुए तुमने भिगाए नैन है 
पर लबों की ये हसी भी तो तुम्हारी देन है 

- अनामिक 
(३०,३१/१२/२०१६) 

22 दिसंबर 2016

तोहफा

दूर शहर से लाए उस तोहफे का मुझसे सवाल है 
"लाए हो जिनके लिए, उन्हे कब देने का खयाल है ? 

दराज में ही रखना था, तो इतनी याद से लाए ही क्यों ? 
उनके पास पहुँचने अब बेसब्री से बुरा हाल है" 

मैंने बोला, "तू तो क्या, मैं चाँद तोडकर भी ला दू 
पर एक चाँद को चाँद दूसरा देने में क्या कमाल है ? 

सब्र रख, तुझे सही वक्त पे नजराने सा पेश करू 
उनको भी तो लगे, की देनेवाला भी बेमिसाल है" 

- अनामिक 
(०८,२१,२२/१२/२०१६) 

19 दिसंबर 2016

इंतजार नही

हाँ, आज भी खुले हैं दिल के खिडकी दरवाजें तेरे लिए 
पर अब आँखों की चौखट को तेरा कोई इंतजार नही 

तू आए तो बाहें खोले जिंदगी करेगी स्वागत ही 
पर ना भी आए, तो भी कोई गम, शिकवा, तकरार नही 

हाँ, कभी कभी तेरे खयाल की तितली उडती हैं मन में 
पर जजबातों के फूलों में अब बचा महकता प्यार नही 

गलती से छिडता है गिटार पे तुझपे रचा हुआ नगमा 
पर गिटार की तारों में अब वो पहले की झनकार नही 

माना पत्थर पे तराशे हुए नाम मिटाना मुश्किल हैं 
पर वक्त की दवा से न ठीक हो, ऐसा कोई वार नही 

- अनामिक 
(१८,१९/१२/२०१६) 

14 दिसंबर 2016

सफर

कभी इस शहर, कभी उस नगर
कभी ये गली, कभी वो डगर
रुकने का ना नाम ले रहा
शुरू हुआ इक बार जो सफर ॥ धृ ॥

कभी पर्बतों की ऊँचाई
कभी नदी की गहराई
कभी पत्थरों की सुंदरता
कभी किले की तनहाई
चख लेती है कितने मंजर
तितली बनकर शोख नजर ॥ १ ॥

हर हफ्ते है नया ठिकाना
नक्शे पर इक नया निशाना
हो ना हो जाने की मनशा
बन जाए खुद-ब-खुद बहाना
बंधा ही रखू अपना बस्ता
आए बुलावा, चलू बेफिकर ॥ २ ॥

- अनामिक
(११-१४/१२/२०१६)

08 दिसंबर 2016

महूरत

इक बात भी करने कभी यूँ तो न फुरसत है तुम्हे 
कैसे मिला फिर आज आने का महूरत है तुम्हे ? 

अब आ गए संजोग से, तो चार पल संग बैठ लो 
कुछ खैर मेरी पूछ लो, कुछ हाल अपना बाँट लो 

मैं मन ही मन में रोज तुम से अनगिनत गप्पें करू 
पर सूझ कुछ भी ना रहा, जब आज हो तुम रूबरू 

बस काम की और काज की ही बात कब से चल रही 
पर क्या करू ? तुमको अलग कुछ जिक्र ही भाता नही 

जो बस चले मेरा अगर, दिन भर यही बैठे रहे 
ना हो जुबाँ से बात भी, सब कुछ निगाहों से कहे 

पर दो मिनट में तुम कहोगे, "देर काफी हो गयी" 
तुम टोकने से पहले ही मैं खुद कहू, "निकले अभी" 

अब उठ गए, तो सूझती हैं सैंकडों बातें भली 
अफसोस, अब बस दो कदम पर है जुदा अपनी गली 

मदहोश रह लू आज, ख्वाबों का खिला जो गुलसिताँ 
आए न आए फिर कभी ऐसा महूरत, क्या पता ? 

- अनामिक 
(०२-०८/१२/२०१६) 

04 दिसंबर 2016

ठीक है

रचता गया मैं तारिफों के फूल उसकी राह में
उसने कहा बस, "ठीक है"
लिखता गया कितने सुहाने गीत उसकी चाह में
उसने कहा बस, "ठीक है"

उसके लबों मुस्कान लाने की सदा की कोशिशें
मांगे बिना करता रहा पूरी सभी फर्माइशें
जो बन सका, सब कुछ किया उसकी फिकर, पर्वाह में
ना लब्ज कम पडने दिए उसकी स्तुती, वाह-वाह में
उसने कहा बस, "ठीक है"

उसकी हथेली में सजा दू चाँद-तारें भी अगर
रुख मौसमों का मोडकर ला दू बहारें भी अगर
वो बस कहेगी, "ठीक है"
मैं तितलियों से रंग चुराकर जिंदगी उसकी भरू
मैं बिजलियों को तोड उसके पैर की पायल करू
वो बस कहेगी, "ठीक है"

वो है अगर यूँ बेकदर, सब जानकर भी बेखबर
मैं सोचता हूँ, बस हुआ.. अब मोड लू अपनी डगर
मैं भी कहू अब, "ठीक है"

- अनामिक
(३०/११/२०१६ - ०४/१२/२०१६)

21 नवंबर 2016

प्रतीक्षा

शांत आहे आज सागर
सुन्न आहे सांजवारा
लाट चंचल स्तब्ध आहे
मौन पांघरुनी किनारा
ये सखे परतून लवकर, अंत बघते ही प्रतीक्षा
बघ कसे अस्वस्थ सारे फक्त नसण्याने तुझ्या ॥ धृ ॥

रोजची ती पाखरांची धुंद किलबिल बंद आहे
पौर्णिमेच्या चांदव्याचे चांदणेही मंद आहे
आठवण येता तुझी होतो मनी नुसता पसारा
ये अता, चैतन्य पसरव गोड हसण्याने तुझ्या ॥ १ ॥

चार दिवसांचा दुरावा, युग उलटल्यासारखा
वाट बघुनी क्षीण झाल्या अंबरातिल तारका
बेचैन भिरभिरते नजर, पण सापडत नाही निवारा
तृप्त कर व्याकुळ मना अवचित बरसण्याने तुझ्या ॥ २ ॥

- अनामिक
(१३-२१/११/२०१६)

19 नवंबर 2016

क्या पसंद आए

खुदा ही तय करे, किसको किसी में क्या पसंद आए
किसे रंग-रूप, किसको मखमली काया पसंद आए

किसे तीखी निगाहें, शरबती आँखें लुभाती हैं
किसे लहराती जुल्फों का घना दर्या पसंद आए

किसी को गाल की लाली, किसे काजल सुहाता है
किसे नाजुक लबों की सुर्ख पंखुडियाँ पसंद आए

किसे नखरें पसंद, कोई अदाओं का है दीवाना
किसे सिंगार, झुमकें, चूडियाँ, बिंदिया पसंद आए

ये सब कुछ हो न हो तुझ में, मुझे ना फर्क पडता है
मुझे बस सादगी तेरी, शर्मो-हया पसंद आए

- अनामिक
(२८/१०/२०१६, १८,१९/१२/२०१६)

12 नवंबर 2016

आशियाना

गुमराह पत्ते की तरह था उड रहा सपना पुराना
अब ठिकाना मिल गया
दिल चाहता था उस जगह, छोटा सही, पर इक सुहाना
आशियाना मिल गया                                  ॥ धृ ॥

अटके पडे थे सुर सभी गुमसुम लबों की कैद में
सोए हुए थे गीत भी सूखी कलम की गोद में
इक बांसुरी गूँजी अचानक,
बेजुबाँ इस जिंदगी को इक तराना मिल गया
आशियाना मिल गया                                  ॥ १ ॥

कुछ बीज धरती में दफन थे, बारिशों की प्यास में
बेताब थे अंकुर दबे, संजीवनी की आस में
बरसी घटा, कलियाँ खिली,
बंजर जमीं को आज फूलों का खजाना मिल गया
आशियाना मिल गया                                  ॥ २ ॥

मेहनत, लगन की, हौसले की जंग थी तकदीर से
पंछी इरादों के बंधे थे वक्त की जंजीर से
किस्मत हुई जो मेहरबाँ,
तोहफा मिला कुछ खास यूँ, मानो जमाना मिल गया
आशियाना मिल गया                                  ॥ ३ ॥

- अनामिक
(१०-१२/११/२०१६)

28 अक्तूबर 2016

अचानक ही नही होता

गज़ल का जनम कागज़ पर अचानक ही नही होता 
भला इन्सान यूँ शायर अचानक ही नही होता 

गिरे जब एक चिंगारी, कई पत्तें सुलगते हैं 
धुआँ खामोश जंगल भर अचानक ही नही होता 

न जाने मुश्किलें कितनी नदी है पार कर आती 
खुशी से चूर तब सागर अचानक ही नही होता 

सितारें जल रहे हैं चाँद की ख्वाइश में सदियों से 
उजागर रात में अंबर अचानक ही नही होता 

मोहब्बत है नशा ज़ालिम, ज़रा धीमे ही चढती है 
असर इसका भले दिल पर अचानक ही नही होता 

- अनामिक 
(२३/०९/२०१६ - २८/१०/२०१६)

22 अक्तूबर 2016

ख्वाब ख्वाब

अभी आँख लगने वाली थी,
की तेरे ख्वाबों के पंछी
आ भी गए सताने को
      तुझे भी कहा नींद है वहा
      इसी लिए भेजा है इनको
      दिल का हाल जताने को

ये भी कोई समय है भला ?
नींद सुकूँ की छोड-छाडकर
ख्वाब ख्वाब हम खेल रहे हैं
      तू इक सपना भेज नजर से
      इधर पकड लू मैं पलखों में
      ख्वाब हर तरफ फैल रहे हैं

ख्वाब रसीला.. ख्वाब शबनमी..
नटखट.. चंचल.. ख्वाब रेशमी..
ख्वाब नासमझ.. ख्वाब बावरा..
      ख्वाब गुदगुदाता.. शरारती..
      ख्वाब मुस्कुराता.. जज़बाती..
      ख्वाब महकता.. ख्वाब सुनहरा..

इतने सारे ख्वाब निराले
भला कहा से लाती है तू ?
इन्हे भेजना अब बस भी कर
      कल के लिए बचाकर रख कुछ
      बाढ आ गयी है ख्वाबों की
      ख्वाब ख्वाब ही हैं अब घर भर

- अनामिक
(२२/१०/२०१६)

19 अक्तूबर 2016

मैं गौर भी करता नही

यूँ ही किसी के गाँव की मैं सैर भी करता नही
पर ठान लू, मंजिल वही, तो देर भी करता नही 

मैं छेडता हूँ बात खुद तुझसे, समझ खुशकिस्मती
वरना किसी भी गैर पे मैं गौर भी करता नही 

हसके नजरअंदाज तेरी सब करू गुस्ताखियाँ
वरना किसी की गलतियों की खैर भी करता नही 

फुरसत मिले तो पढ कभी तुझ पे रची नज्में सभी
यूँ ही किसी पे पेश मैं इक शेर भी करता नही 

कुछ बात है दिल में, तभी पैगाम दोस्ती का लिखा
वरना किसी अंजान से मैं बैर भी करता नही 

- अनामिक
(१९/१०/२०१६)